प्रमोद त्रिवेदी/इंदौर। राज्य सरकार ने पंचों का सालाना भत्ता दोगुना करने की घोषणा क्या की, 263 करोड़ रुपए का 'पंच भत्ता घोटाला' सामने आ गया। दरअसल प्रदेश के 90 फीसदी से ज्यादा पंचों को यही नहीं पता कि सरकार उन्हें बैठकों के लिए सालाना 600 रुपए देती है।
सरकार की घोषणा के बाद कुछ जिज्ञासु पंचों ने पूछताछ की तो ये राज खुला कि ऊपर से तो पैसा आता है, लेकिन जनपद पंचायत आकर रुक जाता है। पता चला कि 20 सालों में 3 लाख 61 हजार पंचों के बैठक भत्ते के लगभग 263 करोड़ रुपए अफसर और कर्मचारी डकार गए। 1995 से 2008 तक 300 स्र्पए भत्ता दिया जाता था। 2009 से इसे 600 रुपए और दो माह पहले 1200 रुपए कर दिया।
जनपद सीईओ ने खोली पोल
आगर जिले के बड़ोद जनपद सीईओ आरसी पवार ने कहा कि नियम तो जरूर है, लेकिन उनकी जानकारी के मुताबिक संभवत: पूरे प्रदेश में एक भी पंच को भत्ता नहीं मिला। उनके 25 साल के कार्यकाल में कभी पंचों को भत्ता नहीं दिया गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि सरपंचों ने कभी पंचों की हाजिरी ही नहीं भेजी। वहीं रायसेन जिले की जनपद सांची, बाड़ी, नसस्र्ल्लागंज के जनपद सीईओ का दावा है कि पंचों को बैठक भत्ता दिया जाता है। हालांकि इनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।
...इधर रिकॉर्ड चाक-चौबंद
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के अनुसार सभी पंचों को बैठक भत्ता दिया जा रहा है। मंत्री के दावे का आधार है पंचायत संचालनालय का रिकॉर्ड, जिसके अनुसार भत्ते का पैसा जारी होता रहता है। ये पैसा जनपद पंचायत के माध्यम से खर्च भी हो जाता है और खर्च का रिकॉर्ड भी वापस संचालनालय पहुंच जाता है, लेकिन ऑडिट की व्यवस्था न होने से यह पता करने का कोई तरीका नहीं रहता कि पैसा वास्तव में पंचों को मिला या नहीं।