
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस संजय यादव की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान डिवीजन बेंच का ध्यान जनहित याचिकाकर्ता की ओर से अपने वकील केके गौतम को भेजे गए उस लिफाफे की ओर आकृष्ट कराया गया, जिसमें हाईकोर्ट के न्यायमूर्तिगण के खिलाफ अशोभनीय शब्दावली का इस्तेमाल किया गया है। यह जानकारी सामने आते ही कोर्ट का रुख सख्त हो गया और कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से हाजिर जनहित याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई गई। उससे सवाल किया गया कि क्या यह कृत्य उसका स्वयं का है? इस पर उसने स्वीकारोक्ति दी। जिसे रिकॉर्ड में लेकर शोकॉज नोटिस जारी कर दिया गया।
क्या है मामला- यह मामला मैनेट भोपाल में 2005 में प्रोफेसर्स की खुली नियुक्ति प्रक्रिया को अनियमितताओं के आधार पर चुनौती दिए जाने से संबंधित है। जनहित याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि मैनेट में अयोग्य या अपेक्षाकृत कम योग्य प्रोफेसर्स बना दिए गए। लिहाजा, सीबीआई जांच होनी चाहिए। इससे पूर्व प्रोफेसर्स की नियुक्ति भी रद्द कर दी जाए। यही नहीं टेबुलेशन व सिलेक्शन कमेटी के सदस्यों को भी आरोपी बनाया जाए। यह पीआईएल समय-समय पर सुनवाई में आई। अंततः हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह मामला जनहित का नहीं वरन निजी है। लिहाजा, जनहित याचिकाकर्ता को रिट पिटीशन में मामला परिवर्तित करने 2 सप्ताह का समय दे दिया गया। जब 2 सप्ताह में ऐसा नहीं किया गया, तो जनहित याचिका खारिज कर दी गई। जिसके बाद प्रो.लवित रावतानी ने अपनी पीआईएल पुनर्जीवित करने की अर्जी दायर कर दी। जिस पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान चौंकाने वाला तथ्य सामने आया तो पूरा मामला यू-टर्न लेकर अन्य दिशा में मुड़ गया।