
मुल्ताई व यूनियन कार्बाइड जैसा होगा हाल
उन्होंने दलील दी कि 7 साल तक चली जांच प्रक्रिया के बाद जस्टिस एसएस झा आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। इतना लंबा समय राज्य शासन सहित अन्य की ओर से आयोग को सुविधाएं व सहयोग ठीक से मुहैया न कराने की वजह से लगा। अब जबकि रिपोर्ट हाईकोर्ट के पटल पर रख दी गई तो राज्य शासन मामले को उलझाने के लिए विधानसभा के पटल पर रिपोर्ट रखे जाने की तिकड़म भिड़ा रहा है। जबकि ऐसा करने पर इस जांच रिपोर्ट का भी वही हाल होगा जो पूर्व में मुल्ताई हत्याकांड या यूनियन कार्बाइड आदि मामलों की जांच रिपोर्ट का हुआ था। लिहाजा, हाईकोर्ट को चाहिए कि वह अपने निर्देश पर गठित आयोग की रिपोर्ट के आधार पर स्वयं संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई सुनिश्चित कराए। बहस के दौरान राज्य व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रविनंदन सिंह खड़े हुए। उन्होंने विधासभा में रिपोर्ट क्यों रखी जाए, इस सिलसिले में कानूनी प्रावधानों को हवाला दिया। उन्होंने जोर दिया कि कमीशन ऑफ इंक्वॉयरी एक्ट-1952 की धारा-3 के तहत इस तरह की रिपोर्ट विधानसभा में रखी जानी चाहिए।