राकेश दुबे@प्रतिदिन। लगातार गिरावट से भारतीय शेयर बाज़ार में निवेशकों के 3.34 लाख करोड़ रुपये साफ हो गए। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 23000 से नीचे चला गया था, जो अब भी 23000 के आसपास ही है, निफ्टी 7000 से नीचे चल रहा है। अभी शेयर बाजारों के और नीचे गिरने का अंदेशा है। निकट भविष्य में ऐसी कोई खबर आने की संभावना नहीं है, जिससे शेयर बाजार तेजी से ऊपर चला जाए। इस महीने के अंतिम दिन वार्षिक बजट आने वाला है। बजट की घोषणाओं से शेयर बाजार में कुछ ऊपर-नीचे हो जाए। अगर बजट ऐसा रहा, जिससे बाजार में उत्साह बढ़े, तो शेयर बाजार कुछ बेहतर होगा, वरना वह और गिर सकता है। माहौल तेजी की संभावना वाला नहीं है। इस वक्त भारतीय बाजार लगभग उस स्तर पर हैं, जहां वे करीब तीन साल पहले थे और हो सकता है कि बाजार उस स्तर से भी नीचे चले जाएं।
शेयर बाजारों के गिरने की वजह घरेलू भी है और इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय कारण भी हैं। दुनिया भर में बाजार गिरे हैं और इसका असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ा है। दुनिया के बाजार कई सारी बुरी खबरों के बीच गिरे हैं। यूरोपीय बाजारों और बैंकों की स्थिति का आकलन बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है, यह पहला कारण है। इससे यह दिख रहा है कि यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही हैं।दूसरी वजह अमेरिकी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष का बयान है, जिसमें उन्होंने दुनिया की आर्थिक स्थिति की विवेचना की है और यह जाहिर किया है कि उन्होंने ब्याज दरें बढ़ाने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह जारी रहेगा। इसके अलावा जापानी केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए ऋणात्मक ब्याज दरों को लागू किया है। इस फैसले ने भी हमारे बाजारों को अस्थिर किया है। सबसे बड़ी वजह चीन की डगमग अर्थव्यवस्था है, जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया है। चीन की आर्थिक रफ्तार के कम होने से कच्चे माल की मांग घटी है और चीन ने अपना निर्यात बढ़ाने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन जारी रखा है, जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं।
भारत की ७.६ प्रतिशत की विकास दर की घोषणा भी भारतीय बाजारों को बचा पाने में सक्षम नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि अन्य सभी आर्थिक पैमाने बहुत उत्साह बढ़ाने वाले नहीं हैं। इस साल देश में कृषि उत्पादन के काफी कम होने की आशंका है और औद्योगिक उत्पादन भी किसी जोरदार विकास की ओर इशारा नहीं कर रहा है। निवेश में निजी क्षेत्र सावधानी बरत रहा है और रोजगार भी नहीं बढ़ पा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों की हालत को देखते हुए घरेलू मांग को बढ़ाने के कदम उठाने के अलावा कोई ऐसा विकल्प नहीं है, जिससे देश में उत्पादन और निवेश बढ़े। वरना भारतीय अर्थव्यवस्था भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ हिचकोले खाती रहेगी।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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