
यानी इनमें करीब सात गुने का अंतर है। इस फर्क से पता चल जाता है कि देश दूध उत्पादन में भले ही दुनिया में अव्वल हो, लेकिन इस क्षेत्र में कितने बड़े झोल कायम हैं। इन्हीं का नतीजा है कि देश में जब-तब दूध की कीमतों में इजाफे की खबर आती रहती है और दूध में मिलावट के सतत किस्सों के बीच देश की बड़ी आबादी, खासकर बच्चे दूध के दो बूंद के लिए तरसते रहते हैं।
ये आंकड़े यह देखते हुए भी हैरानी जगाते हैं कि सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी चुनावी सभाओं में यूपीए सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि उसने दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी का प्रयास करने के बजाय देश में गुलाबी क्रांति (मांसाहार के उत्पादन को बढ़त दिलाने वाली क्रांति) ला दी, जिससे देश में दूध को लेकर कई संकट पैदा हो गए। भाजपा के बहुमत वाले शासन में भी बूचडखानों की संख्या बढ़ी ही है | गुलाबी क्रांति यानी मांस के बढ़ते व्यापार के जिक्र का संदर्भ यह था कि मांस की विदेशी मांग को पूरा करने के लिए देश के बूचड़खानों में हजारों मवेशी रोजाना काटे जा रहे हैं। इनमें दुधारू पशुओं की भी तादाद काफी होती है।
इस कारण दूध के उत्पादन में मांग के मुकाबले बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। पर अब आरटीआई से जो जानकारी प्रकाश में आई है, वह भी तो दुग्ध उत्पादन के मुकाबले गुलाबी क्रांति में ही और बढ़वार के संकेत दे रही है। यह भी माना जा रहा है कि बूचड़खानों की जो संख्या बताई गई है, वह असल में कुल बूचड़खानों के मुकाबले आधी भी नहीं है। देश में हजारों अवैध और गैर-पंजीकृत बूचड़खाने हैं और ज्यादातर लोग इन्हीं जगहों से मांस खरीद कर खाते हैं।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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