राकेश दुबे@प्रतिदिन। दुनिया भर के निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक और जहाँ 'इन्वेस्ट कर्नाटक 2016' का आयोजन हो रहा है और उस समय एक विदेशी युवती के साथ दुर्व्यवहार की घटना हो गई। यह घटना दुखद जरूर है, लेकिन चौंकाने वाली नहीं है। देश में इन दिनों 'दूसरों' के साथ दुर्व्यवहार और हिंसा की घटनाएं आम हैं, चाहे वे विदेशी हों, या देश के ही दूसरे इलाकों से आए लोग हों या फिर धार्मिक अल्पसंख्यक हों। बेंगलुरु को देश के अपेक्षाकृत उदार शहरों में गिना जाता है, लेकिन यहां पिछले दिनों पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को लेकर ऐसी अफवाहें उड़ी थीं और ऐसी घटनाएं हुई थीं कि हजारों लोग डर के मारे पलायन कर गए थे।
प्रश्न यह है कई ऐसी अनुदारता और संकीर्णता भारतीय आधुनिक जीवन का तेजी से हिस्सा बन रही है। तेज परिवहन और सूचना तकनीक के विकास से दुनिया में लोग एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं, लेकिन हमारे देश में जो करीब हैं, वही दुश्मन बने जा रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग पूरे देश में दुर्व्यवहार झेलते हैं, उत्तर भारतीय मुंबई में असुरक्षित महसूस करते हैं। अगर हम अपने ही देश के लोगों के लिए इतने अनुदार हैं, तो विदेशियों के साथ कैसे उदार हो सकते हैं? इसी अनुदारता की वजह से हम अपनी ही तरह की संस्कृति के बीच सहज महसूस करते हैं, इससे अलग संस्कृति के लोगों को हम शक और नफरत की निगाह से देखते हैं। खासतौर पर भारतीय समाज के एक बडे़ हिस्से को आधुनिक संस्कृति से हिकारत है। वे आधुनिक दिखते लोगों को, खासकर महिलाओं को अनैतिक समझते हैं। यह शक और नफरत जरा-सी चिनगारी मिलते ही हिंसा के रूप में भड़क उठती है। यह एक अजीब विरोधाभास है कि दुनिया में सबसे ज्यादा आप्रवासी भारतीय हैं, यहां तक कि भारत से बाहर दुनिया भर के देशों में भारतीय मूल के लोगों की तादाद एक करोड़ से ऊपर पहुंच गई है, लेकिन भारत अब भी विदेशियों के लिए बहुत दोस्ताना और सुरक्षित देश नहीं है।
नफरत और संकीर्णता के अलावा एक और प्रवृत्ति भारत में दिख रही है कि वैधानिक संस्थाओं पर लोगों को भरोसा नहीं रह गया है। सरकारी भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता से जनता को यह लगने लगा है कि अपने फैसले उसे खुद ही करने हैं। खासतौर पर पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया से लोगों को अब यह विश्वास नहीं होता कि उन्हें न्याय मिल पाएगा या दोषी को सजा मिल पाएगी। इसलिए लोग बात-बात पर कानून अपने हाथ में ले लेते हैं। समाज में बढ़ती हुई अनुदारता और हिंसा से हमारे समाज के बारे में अच्छी राय नहीं बनती। हमारे समाज और देश के नेताओं को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए।