
यह चौंकाने वाला खुलासा आरटीआई एक्टीविस्ट और सूचना का अधिकार आंदोलन के संयोजक अजय दुबे ने शनिवार को इंदौर में किया। मीडियाकर्मियों से चर्चा में उन्होंने कहा प्रदेश सरकार कभी नहीं चाहती थी कि व्यापमं और डीमेट घोटालों की जांच सीबीआई करे। काबिल सरकारी वकीलों की टीम के बावजूद सरकार ने अपना पक्ष कोर्ट के समक्ष रखने के लिए महंगे वकीलों की सेवा ली। इन वकीलों में से कुछ को तो एक पेशी के लिए 20-20 लाख रुपए तक भुगतान किया गया। दुबे ने बताया कि हाल ही में विभाग के सूत्रों से इस बारे में पुख्ता दस्तावेज मिले। इनसे सिद्ध होता है कि महाघोटालों की सीबीआई जांच से बचने के लिए सरकार ने करीब सवा करोड़ रुपए खर्च किए।
विधि विभाग ने ली थी आपत्ति
दुबे ने बताया कि सरकार द्वारा विधि विभाग की पूर्व अनुमति के बगैर महंगे वकीलों को पैरवी के लिए अनुबंधित किया गया था। बाद में उनके बिल भुगतान के लिए पेश किए गए। विभाग ने इस पर आपत्ति भी ली थी, इसके बावजूद भुगतान किया गया। दुबे ने यह आरोप भी लगाया कि प्रदेश सरकार सामान्य वकीलों के मुकाबले बड़े नेताओं के रिश्तेदारों से पैरवी करवा रही है।
लोक अदालत भी टाल दी
दुबे ने बताया कि सूचना आयोग ने 5 दिसंबर को इंदौर में लोक अदालत की घोषणा की थी। लोक अदालत में सूचना के अधिकार के तहत पेश प्रकरणों का निराकरण होना था, लेकिन ऐन वक्त पर लोक अदालत खारिज कर दी गई।
इन वकीलों को हुआ भुगतान
सीनियर एडवोकेट उदय ललित : 80 लाख रुपए
एडवोकेट एल नागेश्वर : करीब 16 लाख रुपए
एडवोकेट मुकुल रोहतगी : साढ़े पांच लाख रुपए
एडवोकेट विभा दत्त माखीजा : एक लाख रुपए