लखनऊ। यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर एक साल से चल रही राजनीति बदस्तूर जारी है. लेकिन अब जो खुलासा हुआ उसे देखकर लगता है कि अखिलेश सरकार और विपक्ष यूपी में लोकायुक्त नियुक्ति को लेकर कितनी गंभीर थे.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, एक साल पहले शुरू हुई लोकायुक्त नियुक्ति की कवायद काफी चौंकाने वाली थी. इंडियन एक्सप्रेस के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने 28 जनवरी 2015 को लोकायुक्त चयन समिति की बैठक हिस्सा लिया तो उनके सामने जो नामों की लिस्ट थी उसमे 30 ऐसे जजों के भी नाम थे जो अब इस दुनिया में हैं भी नहीं. उन नामों में सबसे ज्यादा उम्र के जो जज थे वह 1951 में ही रिटायर हो चुके थे.
लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए जो लिस्ट चयन समिति के पास भेजी गई थी उसमें कुल 396 जजों के नामों पर विचार किया जाना था. इसमें 41 पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के नाम थे जबकि 28 नाम ऐसे थे जो मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट के जज हैं. इसके अलावा 150 सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, इलाहबाद हाईकोर्ट के 76 मौजूदा और 101 पूर्व जजों के नाम शामिल थे.
आपको बता दें कि 16 दिसम्बर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी नाम पर सहमती न बनने की स्थिति में रिटायर्ड जस्टिस वीरेंदर सिंह को यूपी का लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था. लेकिन इलाहबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की आपत्ति के बाद उनके शपथ ग्रहण समारोह को 19 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया था. हालांकि वीरेंदर सिंह के नाम पर मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष सौम्य प्रसाद मौर्य की सहमती थी.