
भारत में स्मार्ट सिटी बनाने की विराट महत्वाकांक्षा के रास्ते में मुश्किलें भी काफी हैं। महाराष्ट्र ने स्मार्ट सिटी के लिए जो योजनाएं प्रस्तुत की हैं, वे इस नजरिए से एक उदाहरण पेश करती हैं। मसलन, महाराष्ट्र ने 29649 करोड़ रुपए की योजनाएं अपने दस शहरों के लिए प्रस्तुत की हैं, उनमें सबसे कम राशि की योजना मुंबई के लिए है। मुंबई के लिए सिर्फ 1118 करोड़ रुपये की योजना प्रस्तावित है, जबकि मुंबई से जुड़े ठाणे के लिए 6630 करोड़ रुपये की योजना है। मुंबई के लिए योजना राशि इसलिए कम है, क्योंकि बृहनमुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) पर शिवसेना का कब्जा है।
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने तो स्मार्ट सिटी योजना को असांविधानिक और अवैध बता दिया है। जब भाजपा के एक सहयोगी दल की यह स्थिति है, तो जो राज्य विपक्ष शासित हैं, उनमें क्या होगा, यह सोचा जा सकता है। अभी तो तमाम राज्यों को स्मार्ट सिटी के नाम पर मिलने वाले पैसे आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन जाहिर है कि केंद्र अगर पैसा देगा, तो उस पैसे के साथ शर्तें भी जुड़ी होंगी। इसके बाद कई तरह की राजनीति शुरू हो जाएगी। जरूरी यह है कि केंद्र सरकार पैसे के सदुपयोग को तो सुनिश्चित करे, लेकिन वह राज्य सरकार की स्वायत्तता का सम्मान भी करे।
अगर स्मार्ट सिटी योजना का पहला चरण कामयाब हुआ, तो इसका फायदा सिर्फ उन्हीं शहरों को नहीं मिलेगा, जिनका नाम इस योजना में है, बल्कि उन शहरों का भी विकास होगा, जो इस योजना में शामिल नहीं हैं। एक शहर में कामयाब योजना बाकी शहरों में इसे अपनाने को प्रोत्साहित करती है, जैसे दिल्ली मेट्रो के साथ हुआ। कर्नाटक के जिन शहरों को स्मार्ट सिटी योजना के तहत केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी, कर्नाटक सरकार ने खुद अपने संसाधनों से उन्हें विकसित करने का फैसला किया है। इसलिए जरूरी है कि इस योजना को कामयाब बनाने में प्रशासनिक और तकनीकी कौशल के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति भी शामिल हो।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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