भारत और नागरिकता के सवाल

अदनान सामी को दी गई नागरिकता के बाद से इस विषय पर सवाल खड़े हुए है | वस्तुत:नागरिकता उस देश के निवासियों को कतिपय अधिकार, कर्त्तव्य और विशेषाधिकार प्रदान करती हैं, जो विदेशियों को प्राप्त नहीं हैं पर बीते कई वर्षों से भारत में बेहिसाब शरणार्थी रह रहे हैं जो इस उम्मीद में हैं कि देर-सवेर उन्हें भी भारत अपनाएगा| पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2011 में 435 लोगों को नागरिकता मिली थी, जबकि 2012 में 637 और 2013 में यही आंकड़ा 1026 का था और 2014 एवं 2015 में क्रमश : 1482 एवं 998 शरणार्थी भारत की नागरिकता प्राप्त करने में सफल रहे. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि 2014 में भारत में शरण चाहने वालों की संख्या 2 लाख थी, इनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा, अफगानिस्तान, ईराक, म्यांमार और अफ्रीकी देशों के लोग भी शामिल हैं, जिसमें ज्यादातर अफगानिस्तान से आने वाले सिख व हिंदू हैं| इसके अतिरिक्त अन्य महाद्वीपों के देश भी इसमें शामिल हैं. इसे देखते यह विमर्श पनपता है कि बड़ी संख्या में अलग-अलग देशों के बाशिंदों का भारत में रचने-बसने की चाह रखने के पीछे असल वजह क्या है?

सरकार ने हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की विभिन्न धाराओं के तहत नागरिकता प्रदान करने की बात कही है पर यह कितना लागू होगा कहना मुश्किल है| अक्सर पनाह मांगने वालों को देश ने अपनाया है बावजूद इसके भारत में अवैध अप्रवासी भारी मात्रा में रह रहे हैं| 2012 की गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है कि ऐसे लोगों की संख्या 71 हजार से अधिक है. ज्यादातर इनमें वे हैं, जिनका वीजा खत्म हो गया पर देश से वापस नहीं गये. इसमें भी बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ही लोग अधिक हैं|

साल 2009 और 2011 के बीच भारत ने करीब 2 हजार से अधिक बांग्लादेशियों को देश से निकाला भी था पर यह समस्या इतनी आसानी से खत्म होने वाली नहीं है. माना जा रहा है कि मोदी सरकार के बनने के बाद से भारत में पाकिस्तानी-बांग्लादेशी हिंदुओं को मिलने वाली नागरिकता में लगातार कमी आ रही है| हालांकि सिंध से दिल्ली आये कई हिंदू परिवार दिल्ली में खुले आकाश के नीचे शरण लिए हुए हैं, जो मोदी-मोदी करते रहते हैं, इस उम्मीद में कि उन्हें सरकार की ओर से कोई मदद मिलेगी. जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और जयपुर जैसे शहरों में तकरीबन 4 सौ पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों की बस्तियां हैं. कुछ ऐसी ही बस्तियां पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में देखे जा सकते हैं. भाजपा सरकार भले ही इन लोगों का नागरिकता देने की वकालत करती आई हो, लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम हुआ है|

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