भोपाल. राजगढ़ जिले की भगोरा गांव की 28 साल की कमलेश विश्वकर्मा की यह कहानी सरकार की सबसे प्रचारित लाड़ली लक्ष्मी योजना के एक बेतुके नियम की है। नियम है कि दूसरी बेटी का नाम स्कीम में दर्ज करने से पहले नसबंदी का प्रमाणपत्र चाहिए। मुश्किल यह थी कि बेटी के जन्म के बाद कमलेश के पति का देहांत हो चुका था। दूसरी क्लास तक पढ़ी कमलेश इसके खिलाफ खड़ी हुई। अब सरकार नियम बदलने को राजी हुई। इससे ऐसी महिलाओं को नसबंदी की शर्त से निजात मिलेगी, जिनके पति नहीं हैं। कमलेश ने डेढ़ साल तक जीरापुर तहसील के महिला बाल विकास कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक के चक्कर काटे। हर हफ्ते भोपाल आई।
कमलेश के पति गिरिराज की मौत एक सड़क दुर्घटना में 10 फरवरी 2014 को हो गई थी। मौत से 11 दिन पहले ही कमलेश ने एक बेटी को जन्म दिया था। यह उनकी दूसरी संतान थी। उसने ससुर भैरो लाल के साथ आंगनबाड़ी में जाकर लाड़ली लक्ष्मी के लिए फार्म जमा किया। मामला तहसील कार्यालय में अटक गया। एक साल तक यहां चक्कर काटे। कभी बेटी का जन्म प्रमाण पत्र तो कभी पति की मौत का प्रमाण पत्र। महीनों गुजर गए।
एक दिन एक अफसर ने नसबंदी का प्रमाण पत्र मांग लिया। नाराज कमलेश छह महीने पहले अपने ससुर के साथ भोपाल आई। महिला एवं बाल विकास विभाग में शिकायत की। मगर फाइलों में कागज चले गए। कोई कार्रवाई नहीं हुई। किसी की सलाह से मुख्यमंत्री निवास के कार्यालय में दस्तक दी। परिक्रमाएं नए सिरे से शुरू हुईं। एक कर्मचारी ने उनके दस्तावेज तक घुमा दिए। भैरो लाल कहते हैं कि बहू ने हार नहीं मानी। वह फिर मुख्यमंत्री कार्यालय आईं। उपसचिव से मिली। उन्होंने राजगढ़ कलेक्टर और विभाग के अफसरों से बात की। अंतत: मुख्यमंत्री कार्यालय से यह केस महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह के पास गया। मंत्री के हस्तक्षेप के बाद नियम में बदलाव की तैयारी हो गई।
हार मान जाती तो बेटी कैसे पालती
सरकार की मंशा ठीक है मगर मुख्यमंत्री को यह भी जानना चाहिए कि बाबूओं की वजह से उनकी ऐसी योजनाओं की क्या गत बन रही है। फिर मैं हार मान जाती तो अपनी बेटी को कैसे पालती।
कमलेश विश्वकर्मा
नियम बदलने जा रहे हैं
गुंजन का मामला मेरे पास आया था। सिर्फ विधवा ही क्यों? किसी के लिए परिवार नियोजन बाध्यता नहीं होना चाहिए। नियम यह हो कि दो बच्चों के बाद तीसरे बच्चे को इसका फायदा नहीं मिलेगा। न कि दूसरे को फायदा देने के लिए पहले नसबंदी कराओ। यह हास्यास्पद है। हम इसे बदलने जा रहे हैं।
माया सिंह, महिला एवं बाल विकास मंत्री