
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने नौकरशाहों से विचार-विमर्श किया था. उस बैठक में गैर-आईएएस अधिकारियों ने अपनी समस्या से उन्हें अगवत कराया था. प्रधानमंत्री ने कार्मिक मंत्रालय से कहा था कि वह 1995 तक के अधिकारियों को संयुक्त सचिव के लिए इम्पैनलमेंट करें, लेकिन वह मौखिक आदेश लागू नहीं हो पाया. इसका असर इतना जरूर हुआ कि नॉन आईएएस अधिकारियों को फटाफट संयुक्त सचिव बनाया जाने लगा. अन्यथा नॉन आईएएस इक्के-दुक्के ही संयुक्त सचिव बनते थे. पिछले तीन सालों में 398 अधिकारी संयुक्त सचिव बने हैं. इनमें 251 आईएएस और 149 गैर-आईएएस अधिकारी हैं. इस साल 2015 में ही गैर-आईएएस अधिकारियों की लाटरी लगी है. लेकिन, जिन अधिकारियों को पदोन्नति नहीं मिल पा रही है वे 10 साल से भी अधिक समय से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
वर्तमान में 1997 बैच के आईएएस अधिकारियों का इम्पैनलमेंट संयुक्त सचिव के लिए हो गया है, जबकि भारतीय एकाउंट्स सेवा के 1994, भारतीय पुलिस सेवा 1993, भारतीय वन सेवा 1989, भारतीय राजस्व सेवा 1988, कस्टम सेवा 1988 तथा भारतीय सूचना सेवा के 1989 बैच के अधिकारियों का ही इम्पैनलमेंट हुआ है. कुछ सेवा में तो 1983 बैच के अधिकारी अभी निदेशक ही हैं. प्रधानमंत्री ने आदेश दिया था कि सभी सेवाओं के 1995 बैच तक के अधिकारियों का इम्पैनलमेंट संयुक्त सचिव के लिए किया जाएगा. उन्होंने समय सीमा निर्धारित की थी. इस लिहाज से 31 दिसम्बर तक सभी सेवा के अधिकारियों को संयुक्त सचिव के लिए इम्पैनलमेंट होना था.
सूत्रों का कहना है कि आईएएस के 1998 बैच के अधिकारियों का संयुक्त सचिव के लिए इम्पैनलमेंट के लिए फाइल पीएमओ भेजी गई थी, लेकिन उसे अभी लौटा दिया गया है. शायद 31 दिसम्बर तक अन्य सेवाओं के 1995 बैच तक के अधिकारियों का इम्पैनलमेंट पहले किया जाना हो. इम्पैनलमेंट का अर्थ होता है कि वह अधिकारी संयुक्त सचिव बनने का योग्य हो गया है और उसे संयुक्त सचिव की सुविधा व वेतन मिलने लगता है. नियम है कि आईएएस को 17 साल में संयुक्त सचिव बनाया जाना है और नॉन आईएएस को दो साल बाद इम्पैनलमेंट करना होता है. लेकिन दो साल बाद उन्हें नॉन फंक्शनल ग्रेड दिया जाता है.
मतलब उन्हें वेतन तो संयुक्त सचिव का दिया जाता है, लेकिन सुविधाएं नहीं मिलती है और वह समय सेवा में पदोन्नति के लिए नहीं जोड़ा जाता. संयुक्त सचिव से नीचे तक एक आईएएस अधिकारी को दूसरे गैर-आईएएस अधिकारी से दो इंक्रीमेंट ज्यादा मिलते है. सातवें वेतन आयोग के सदस्यों ने आईएएस और गैर-आईएएस का अंतर मिटाने के लिए अलग राय दी है. आपस में मतभेद होने के कारण आयोग ने भारतीय वन सेवा और भारतीय पुलिस सेवा को आईएएस के बराबर रखने की सिफारिश की है. यही मांग दूसरी सेवाओं के अधिकारी भी कर रहे हैं.