राकेश दुबे@प्रतिदिन। संसद में लगातार न केवल बहस का समय घट रहा है, बल्कि उसका स्तर भी गिर रहा है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के मुताबिक संसद में तय कामकाज के मुताबिक राज्यसभा में जहां सिर्फ 46 प्रतिशत ही काम हो सका | लोकसभा में प्रश्नकाल तय समय में से 87 प्रतिशत में काम हुआ, वहीं राज्यसभा में सिर्फ मात्र 14 प्रतिशत । इसे 2 तरह से समझा जा सकता है | लोकसभा में सरकार का बहुमत है इसलिए वहां कामकाज हो रहा है, वहीं चूंकि राज्यसभा में विपक्ष बहुमत में है, वह सरकार को काम नहीं करने दे रहा है। या यूँ भी कहा जा सकता है चूंकि लोकसभा में सरकार का बहुमत है, इसलिए वह विपक्ष की परवाह नहीं कर रही है।यदि भारतीय संसद के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि पिछली यानी 15वीं लोकसभा में सबसे कम काम हुआ था। उस वक्त कांग्रेस की अगुआई वाला यूपीए सत्ता में था और भाजपा की अगुआई वाला राजग विपक्ष में।
संसद का काम कानून बनाना है, और देशहित के मुद्दों पर बहस करना है। वास्तव में संसद के भीतर होने वाले काम का संबंध चुनाव सुधार से जुड़ा हुआ है। जब तक अच्छे लोग चुनकर नहीं आएंगे, संसद के भीतर अच्छी बहस भी सुनने को नहीं मिलेगी। ऐसा नहीं है कि अबके दौर से पहले चुने जाने वाले सभी लोग पढ़े लिखे और विद्वान ही थे। पढ़ने लिखने का आशय सिर्फ डिग्रियों से नहीं है, काम करने से है। आज ऐसी कितनी पार्टियां हैं, जो जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को संसद तक पहुंचा रही हैं?सदन के भीतर बहस का स्तर गिर रहा है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सदस्य अब पूरी तैयारी के साथ सदन में नहीं जा रहे हैं। संसद की अपनी समृद्ध लाइब्रेरी है, वहां अब आपको बहुत कम सांसद नजर आते हैं ।
वास्तव में संसद कोई फैक्टरी नहीं है कि उसकी उत्पादन क्षमता को घंटों से आंका जाए। लेकिन इन दिनों समाचार टीवी चैनलों में जो बहसें और रिपोर्ट दिखाई जाती हैं, उससे लगता है कि मानो संसद कोई फैक्टरी है और वहां से माल बनकर तैयार नहीं हो रहा है!संसद को चलाने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की है। उन्हें समझने की जरूरत है कि इसी से उनकी साख भी जुड़ी हुई है। देश को प्राणवान और उर्जावान संसद चाहिए, हंगामों के लिए तो चौराहे काफी है |