सस्ते और जल्दी घर के लिए एक और कवायद

राकेश दुबे@ प्रतिदिन। सरकार ने बिल्डरों की मनमानी पर शिंकजा कसने के लिए रीयल एस्टेट (नियमन और विकास) विधेयक-2015 के मसौदे को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद बिल्डरों को अपनी परियोजनाएं समय पर पूरी करने के लिए एक अलग बैंक खाते में निर्धारित धनराशि जमा करनी होगी। कानून का उल्लंघन करने वाले बिल्डरों पर जुर्माना भी लगेगा। इस विधेयक के पारित होने पर रीयल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा जिससे सबके लिए आवास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा।

रीयल एस्टेट सेक्टर लगभग अनियमित रहा है। इसमें बिल्डरों की कोई जवाबदेही नहीं रही है। सरकार के ताजा कदम के बाद रीयल एस्टेट सेक्टर में जवाबदेही आएगी और ग्राहकों के हितों को देखा जाएगा। अगर रीयल एस्टेट फर्म चाहें तो भी बहुत कुछ ग्राहकों के पक्ष में हो सकता है। ये इतने अधिक मर्जिन पर काम करती हैं। ये अपने विज्ञापनों पर भी बहुत मोटा बजट रखती हैं। अगर ये अपने घरों के दाम तर्कसंगत से तय करें तो घरों के दाम सीमाओं में ही रहेंगे। उन्हें सामान्य नौकरीपेशा इंसान भी खरीदने की हालत में रहेगा।

देश में बिल्डरों के कामकाज का हिसाब रखने वाली संस्था प्रॉप इक्विटी के एक अध्ययन के मुताबिक, एनसीआर के बिल्डरों ने तो अंधेर मचा रखा है। इनमें से ज्यादातर वादा करने के बाद भी अपने ग्राहकों को वक्त पर घर नहीं दे रहे। एनसीआर में ज्यादातर प्रोजेक्टो में 19 से 25 महीनों की देरी हो रही है। फरीदाबाद में 25, गाजियाबाद में 19, ग्रेटर नोएडा में 24, गुड़गांव में 22 और दिल्ली में 22 माह की देरी से काम हो रहा है। यह सारी स्थिति उन तमाम लोगों के लिए बेहद कष्टदायी है, जो अपने घरों  का इंतजार कर रहे हैं। कमोबेश यही हाल सारे देश का है. देश के प्रख्यात आर्किटेक्ट कहते हैं कि बिल्डर बिरादरी को सस्ते घर बनाने पर फोकस रखना चाहिए न कि भारी-भरकम विज्ञापनों को देने पर। अफसोस कि देश के हाऊसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की तरफ ठोस पहल नहीं हो रही।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 
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