प्रदूषण: कुछ सोचिये पूरे देश के लिए, देश में

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यहाँ वहां और अदालत से झिडकी खाने के बाद देश की एक सरकार, दिल्ली सरकार ने कुछ करने का बीड़ा उठाया है, वस्तुत: दिल्ली ही नही देश के कई शहर  औद्योगिक विकास, बढ़ता शहरीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति आधुनिक विकास के ऐसे नमूने हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूषित करते हुए समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं| दिल्ली प्रदूषित वायु की गिरफ्त में है; क्योंकि यहां वायुमंडल में वायु प्रदूषण की मात्रा ६०  प्रतिशत से अधिक हो गई है| इसीलिए एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिग्रहण ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए समस्या का हल ढूंढ़ने की सलाह दी है|  दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो यहाँ तक कहा है कि दिल्ली अब एक बंद गैस चैंबर में बदलती जा रही है| कोई शहर जल कोई थल कोई वायु तो कोई ध्वनि प्रदूषण की जद में है |

दिल्ली ने तात्कालिक हल के लिए तीन नीतिगत फैसले लिए हैं| एक, दिल्ली में बदरपुर का ताप विद्युत बिजली घर बंद कर दिया जाएगा| दो, वाहनों के लिए यूरो क्षय उत्सर्जित नियम लागू होगा और तीसरे, एक दिन सम और दूसरे दिन विषम नंबरों के ही वाहन सड़कों पर उतरेंगे| हालांकि वाहनों के बाबत दिल्ली सरकार ने कहा है कि यदि इस फैसले से जनता को परेशानी होती है तो १५  दिन बाद इसे वापिस ले लिया जाएगा| 

भारत में औद्योगीकरण की रफ्तार भूमण्डलीकरण के बाद तेज हुई. एक तरफ प्राकृतिक संपदा का दोहन बढ़ा तो दूसरी तरफ औद्योगिक कचरे में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई|  लिहाजा, दिल्ली में जब शीत ऋृतु ने दस्तक दी तो वायुमण्डल में आद्र्रता छा गई| यह क्बोमेश हर बड़े शहर के हाल हैं | इस नमी ने धूल और धुएं के बारीक कणों को वायुमण्डल में विलय होने से रोक दिया और ऊपर एकाएक कोहरा आच्छादित हो गया|  वातावरण का यह निर्माण क्यों हुआ, मौसम विज्ञानियों के पास इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है| 

दिल्ली में वे इसकी तात्कालिक वजह पंजाब-हरियाणा में खेतों में जलाए जा रहे फसल के डंठल बता रहे हैं| यदि वास्तव में इसी आग से निकला धुंआ दिल्ली में छाए कोहरे का कारण होता तो यह स्थिति चंडीगढ़,अमृतसर, लुधियाना और जालंधर जैसे बड़े शहरों में भी दिखनी चाहिए थी, लेकिन नहीं दिखी|  सही मायने में मुख्य वजह हवा में लगातार प्रदूषक तत्वों का बढ़ना है. दरअसल, मौसम गरम होने पर जो धूल और धुंए के कण आसमान में कुछ ऊपर उठ जाते हैं, वे सर्दी बढ़ने के साथ-साथ नीचे खिसक आते हैं| पूरे  बढ़ते वाहन और उनके सह उत्पाद प्रदूषित धुंआ और सड़क से उड़ती धूल अंधियारे की इस परत को और गहरा बना रहे हैं|

इस प्रदूषण के लिए बढ़ते वाहन कितने दोषी हैं, इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि हाल ही में दिल्ली में ‘कार मुक्त दिवस’ आयोजित किया गया था| इसका नतीजा यह निकला कि उस थोड़े समय में वायु प्रदूषण करीब २६  प्रतिशत कम हो गया था|  पेरिस के साथ सारे देश में इस विषय पर जाग्रति जरूरी है | कुछ यहाँ भी हो जाये | 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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