राकेश दुबे@प्रतिदिन। पहली पंचवर्षीय योजना के साथ केंद्र और राज्यों के पीएसयू स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की गई थी। ये विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं। इन्होंने देश में आधारभूत ढांचा खड़ा करने में शानदार योगदान दिया है। केंद्र के कई पीएसयू तो अपने-अपने क्षेत्रों में दुनिया में बड़े खिलाड़ी के रूप में पहचान बना चुके हैं। इन्हें महारत्न कंपनियों का दर्जा मिल चुका है।
दरअसल, भारत सरकार द्वारा नियंत्रित और संचालित उद्यमों और उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या पीएसयू कहा जाता है। केंद्र या किसी राज्य सरकार के आधिपत्य वाले सार्वजनिक उपक्रम में सरकारी पूंजी की हिस्सेदारी इक्यावन प्रतिशत या इससे अधिक होती है।
जब से सरकार ने पीएसयू बोर्ड को अपने फैसले खुद लेने के अधिकार दिए हैं तब से इनके मुनाफे और कामकाज में गुणात्मक सुधार हो रहा है। राजग सरकार बनने के बाद एक तरह से सभी पीएसयू बोर्ड अपनी योजनाओं को लेकर फैसले करने को स्वतंत्र हैं। इसका ताजा उदाहरण है महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल)। यह लंबे समय से घाटे में चल रहा था। लेकिन, अब इसने टेलीकॉम सेक्टर की कड़ी प्रतिस्पर्धा में अपने लिए जगह बनानी शुरू कर दी है। हालांकि इसे भारती एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया जैसी निजी क्षेत्र की नामवर कंपनियों से कड़ी चुनौती मिल रही है। भारत में १९५१ में मात्र पांच पीएसयू थे। अब इनकी तादाद लगभग ढाई सौ हो चुकी है। पीएसयू के सफर को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला, स्वतंत्रता से पूर्व। दूसरा, स्वतंत्रता के बाद। तीसरा, आर्थिक उदारीकरण के बाद।
अच्छी बात है कि सरकार देश में सार्वजनिक क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उसका नजरिया स्पष्ट है कि हमारी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांग पूरी करने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को मिल कर और एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करने की जरूरत है। हमारे देश को सार्वजनिक और निजी, खासकर ढांचागत क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत है। खासकर ऐसे समय सार्वजनिक निवेश की जरूरत है, जब देश मुश्किल वैश्विक माहौल का सामना और विविधतापूर्ण घरेलू वृद्धि की उम्मीद कर रहा है।
सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में निवेश मुख्य रूप से विनिर्माण, खनन, बिजली और सेवाओं में केंद्रित है। इन्हें विनिर्माण क्षेत्र में भी ज्यादा बेहतर कार्य करने की जरूरत है। यही नहीं, इन्हें अपने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में विनिर्माण क्षेत्र के हिस्से को वर्तमान पंद्रह प्रतिशत के असंतोषजनक स्तर से बढ़ाना चाहिए।
सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पुनर्संरचना कार्यालय 2004 में बनाया गया था। तब से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के तिरालीस उपक्रमों के जीर्णोद्धार के प्रस्तावों का अनुमोदन किया गया है। बेहतर बात यह है कि उनमें से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के चौबीस उपक्रम मुनाफा कमाने लगे हैं और तेरह में क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है, वे तीन या अधिक वर्ष से निरंतर मुनाफा कमा रहे हैं। तेजी से बदलाव के इस दौर में प्रतिस्पर्द्धा में टिके रहने के लिए केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कॉरपोरेट सुशासन, रणनीतिक नियोजन, अनुसंधान और विकास तथा गुणवत्ता नियंत्रण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उधर सरकार को भी उन्हें अपेक्षित स्वायत्तता देनी होगी।