राकेश दुबे@प्रतिदिन। चीन और नेपाल के बीच व्यापर समझौते हुए है , तब जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को लेकर नेपाल और भारत के बीच राजनयिक गतिरोध बना हुआ है। नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसी समूहों ने भारत के साथ व्यापार मार्गों को बाधित कर रखा है जिस कारण आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई। पीएम पद के चुनाव में ओली ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कोइराला को हराकर जीत दर्ज की। कोइराला का रवैया अन्य पडौसी देशो की तुलना में भारत के काफी नजदीक माना जाता रहा है।
इस बार पीएम के चुनाव में नेपाल के दो विपरीत दल (लेफ्ट और राइट) एक साथ खड़े हुए। पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी युनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल और कमल थापा की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी-नेपाल ने ओली का समर्थन किया। प्रचंड और थापा नेपाल के तीसरे और चौथे सबसे बड़े दल का नेतृत्व करते हैं। कमल थापा को उप प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। समझा जाता है कि उन्हें ओली का समर्थन करने का इनाम मिला है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद ओली के सामने सबसे बड़ी चुनौती नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसी और थारू समुदाय की चिंताओं का समाधान करना है। मधेसियों का आरोप है कि प्रचंड की शह पर नए संविधान में उनके साथ भेदभाव किया गया है। यह स्पष्ट है कि प्रचंड का झुकाव भारत से कहीं ज्यादा चीन की तरफ है। प्रचंड की पार्टी ओली का समर्थन कर रही है। ऐसे में ओली मधेशियों और थारू समुदाय के साथ कितनी सहमति बना पाते हैं यह देखने वाली बात होगी। ओली को प्रचंड द्वारा समर्थन दिए जाने को लेकर यह कहा जा रहा है कि प्रचंड की नजर नेपाल के अगले राष्ट्रपति पद पर है। रिपोर्टों की मानें तो ओली और प्रचंड के बीच राष्ट्रपति पद को लेकर पहले ही सहमति बन गई है। प्रचंड यदि नेपाल के राष्ट्रपति बनते हैं तो नेपाल में भारतीय हितों की तुलना में चीन की नीतियों को ज्यादा तरजीह दी जाएगी। पहाड़ी और तराई क्षेत्र के लोगों के बीच दूरी बढ़ने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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