राकेश दुबे@प्रतिदिन। महागठबंधन की प्रचंड जीत ने देश के राजनीतिक फलक पर एक नई हलचल पैदा कर दी है।यदि महागठबंधन की इस जीत को विपक्षी एकता के प्रतीक के तौर देखें तो आगामी समय में देश की राजनीति के एक नई दिशा में बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं, जो भाजपा पर निश्चित भारी होंगे । लोकसभा चुनावों के बाद देश में हर तरफ 'मोदी लहर' ही नजर आ रही थी, लेकिन भाजपा के अश्वमेधी अभियान को महागठबंधन ने बिहार में रोक दिया।
क्या देश की राजनीति में बिहार चुनाव परिणाम ‘एक नेता के कमजोर होने का प्रतीक’ है? क्या यह चुनाव देश की राजनीति में नया परिवर्तन लाएगा? क्या अन्य राज्यों में भी भविष्य में चुनाव होने पर बिहार जैसे ही परिणाम आएंगे? क्या इस चुनाव परिणाम को मोदी के प्रति लोगों की राय के तौर पर भी लिया जाएगा? क्या यह बीजेपी और नरेंद्र मोदी की हार है? क्या ‘बिहारी विरुद्ध बाहरी’ का मुद्दा बीजेपी के लिए सरदर्द साबित हुआ? क्या यह नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह है?
भाजपा ने यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा। 'मोदी लहर' को भुनाने की कोशिश की । लेकिनभाह्पा का यह फॉर्मूला पूरी तरह विफल हो गया। भाजपा को भी अब इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए। यह हार एक नेता के कमजोर होते स्तर को भी कुछ हद तक दर्शाती है। नितीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वमान्य नेता के तौर पर उभरने के आसार बनने लगे हैं।
बिहार में निर्णायक जनादेश को अब हर विपक्षी दल अपने अनुसार सांचे में ढालने की जुगत में है जिससे भाजपा के खिलाफ मजबूत किले बंदी की जा सके। इससे यह संकेत मिलता है कि बीजेपी विरोधी धुरी अब कुछ ज्यादा मजबूत होने की ओर अग्रसर होगा। यह जीत देश के अन्य राज्यों में भाजपा विरोधी दलों के लिए संजीवनी का भी काम करेगी। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों में एक साल के बाद चुनाव होने हैं। ऐसे में ये चुनाव परिणाम जरूर उन राज्यों में भी असर डालेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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