ग्वालियर। आशा, उषा कार्यकर्ताओं को शासन ने लगभग बंधुआ मजदूर बना रखा है। निर्धारित कामों के लिए निर्धारित मानदेय है, लेकिन तमाम ऐसे काम आशा व उषा कार्यकर्ताओं के मत्थे मढ़ दिए गए हैं, जिनका न तो कहीं कोई उल्लेख है और ना ही कोई मानदेय निर्धारित है। सरकार द्वारा कराई जा रही इसी बेगारी को लेकर सोमवार को सिविल अस्पताल हजीरा पर तमाम आशा कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया। उनका कहना था कि हमें शासन ने बंधुआ मजदूर बना रखा है। स्थानीय अधिकारियों ने इन सभी को डेंगू लार्वा सर्वे के लिए मानदेय दिलवाने का आश्वासन देकर फिलहाल विरोध टाल दिया है।
दरअसल आशा व उषा कार्यकर्ताओं को मूल रूप से स्वास्थ्य विभाग की संस्थागत प्रसव व टीकाकरण योजना के लिए रखा गया है। इन कामों के पूरा होने पर ही उन्हें निर्धारित मानदेय मिलता है। वहीं स्थानीय स्तर पर महकमे के अधिकारी इन कार्यकर्ताओं को बेगार के तौर पर उन योजनाओं में लगाए हुए है, जिनमें मानदेय का कोई प्रावधान ही नहीं है। मसलन मलेरिया विभाग द्वारा कराए जाने वाले डेंगू लार्वा सर्वे में इन कार्यकर्ताओं को भी लगा दिया है। वास्तव में इस तरह के सर्वे में इन्हें लगाए जाने का न कोई प्रावधान है और न ही कोई मानदेय तय है। इससे पहले ओआरएस पैकेट के वितरण में भी इन कार्यकर्ताओं को लगा दिया गया था। महीने भर तक इस काम में लगे रहने पर अब तक कुछ नहीं मिला।
धरने पर बैठीं तब अधिकारियों को आया होश
आशा कार्यकर्ताओं ने सुबह 9 बजे से सिविल अस्पताल हजीरा पर धरना देना शुरू किया तो अधिकारियों के होश उड़े। आनन-फानन में सीएमएचओ डॉ.अनूप कम्ठान, सिविल सर्जन डॉ.डीडी शर्मा पहुंचे। आश्वासन दिया कि वह प्रति घर एक रुपए का मानदेय दिलवाने के लिए शासन को पत्र लिखेंगे। मंगलवार व बुधवार की छुट्टी भी दे दी।
