नई दिल्ली। सातवें वेतन आयोग द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्तों तथा पेंशन में औसतन 23.55 प्रतिशत बढ़ोतरी की सिफारिश को एक ओर जहां सरकारी कर्मचारी उम्मीद से कम बता रहे हैं, वहीं उद्योग संगठन एसोचैम का कहना है कि सरकार को वेतन में सिफारिश से कम बढ़ोतरी करनी चाहिए क्योंकि इसे पूरी तरह लागू कर देने पर सरकारी कोष संकटपूर्ण स्थिति में आ जाएगा।
एसोचैम ने आज जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 9.20 लाख करोड़ रुपए के कर राजस्व संग्रह का लक्ष्य रखा है। वेतन आयोग की सिफारिशें ज्यों की त्यों लागू कर देने से 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों तथा 52 लाख पेंशनधारकों के वेतन तथा पेंशन पर सरकार का खर्च 1.02 लाख करोड़ बढ़कर 5.27 लाख करोड़ पर पहुंच जाएगा। यह कुल कर राजस्व का 57 प्रतिशत होगा।
संगठन के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि यदि राजस्व का आधे से ज्यादा हिस्सा वेतन में चला जाए तो कोई भी वित्तीय ढांचा चरमरा जाएगा। हमें ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं करनी चाहिए जिससे वेतन भुगतान के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़े। हालांकि, वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि वेतन भुगतान के मद में बढ़े हुए खर्च के बावजूद सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटे को 3.9 प्रतिशत की सीमा तथा अगले वित्त वर्ष के लिए 3.5 प्रतिशत के दायरे में रखने में सफल होगी, फिर भी सवाल यह उठता है कि सरकार यह सब कैसे करेगी।
एसोचैम ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और मांग की मंदी को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू करने से पहले बचे हुए चार महीने में अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा सुधार आ जाएगा। एसोचैम ने कहा कि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए सरकार विनिवेश पर निर्भर नहीं रह सकती। उसे अपने राजस्व से वेतन देना चाहिए।
यह कहना गलत होगा कि समस्त राजस्व संग्रह से कर्मचारियों के बढ़े वेतन की भरपाई की जाएगी क्योंकि राजस्व संग्रह का एक हिस्सा (5.23 लाख करोड़ रुपए) राज्य सरकारों को जाता है। विज्ञप्ति में यह आशंका जताई गई है कि पहले से ही वित्तीय लक्ष्य हासिल करने को लेकर जारी दबाव के बीच वेतन भुगतान का बोझ बढ़ने से विकास कार्यों के मद में होने वाले खर्च में भारी कटौती हो सकती है, जिससे निवेश की स्थिति और खराब होगी।
उद्योग संगठन का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ने के बाद निजी कंपनियों पर भी उसी तर्ज पर वेतन वृद्धि का दबाव होगा। लेकिन, सौ बड़ी कंपनियों को छोड़कर संगठित या असंगठित क्षेत्र की कोई भी बड़ी, मझौली या छोटी कंपनी इस प्रकार की बढ़ोतरी करने की स्थिति में नहीं है।