जबानी जमा खर्च से नहीं होगा “स्किल इंडिया” और न “मेक इन इंडिया”

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले दिनों आईसीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं। आने वाले युवाओं में से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंक़डा कम होने के बावजूद पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंक़डे से ज्यादा है और संकेत देता है कि युवाओं को स्किल देने की दिशा में धीमी गति से ही काम हो रहा है। डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है। इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है।

सही अर्थों में हमने यह बात समझनें में बहुत देर कर दी की अकादमिक शिक्षा की तरह ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल की शिक्षा देनी भी जरूरी है। एशिया की आर्थिक महाशिक्त दक्षिण कोरिया ने स्किल डेवलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिखाया है और उसके चौंधिया देने वाले विकास के पीछे स्किल डेवलपमेंट का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।इस मामले में उसने जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है। १९५०  में दक्षिण कोरिया की विकास दर हमसे बेहतर नहीं थी। लेकिन इसके बाद उसने स्किल विकास में निवेश करना शुरू किया। यही वजह है कि १९८० तक वह भारी उद्योगों का “हब” बन गया। उसके ९५ प्रतिशत मजदूर स्किल्ड हैं या वोकेशनलीट्रेंड हैं, जबकि भारत में यह आंक़डा तीन प्रतिशत है। ऐसी हालत में भारत कैसे आर्थिक महाशिक्त बन सकता है?

अधिकांश कॉलेजों से निकलने वाले लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग या तकनीकी डिग्री तो है, लेकिन कुछ भी कर पाने का स्किल नहीं है, जिसकी वजह से देश भर में  हर साल लाखों लाखों इंजीनियर बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर है। हमें यह बात अच्छी तरह से समझनी होगी की इतनी बड़ी युवा आबादी से अधिकतम लाभ लेने के लिए भारत को उन्हें स्किल बनाना ही होगा, जिससे युवाओं को रोजगार व आमदनी के पर्याप्त अवसर मिल सकें। सीधी सी बात है जब छात्र स्किल्ड होगें तो उन्हें रोजगार मिलेगा तभी उच्च और तकनीकी शिक्षा में व्याप्त मौजूदा संकट दूर हो पाएगा।

अधिकांश कॉलेजों से निकलने वाले लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग या तकनीकी डिग्री तो है, लेकिन कुछ भी कर पाने का स्किल नहीं है, जिसकी वजह से देश भर में  हर साल लाखों लाखों इंजीनियर बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर है। हमें यह बात अच्छी तरह से समझनी होगी की “”स्किल इंडिया” के बिना “”मेक इन इंडिया”” का सपना भी नहीं पूरा हो सकता, इसलिए इस दिशा में अब ठोस और समयबद्ध प्रयास करनें होंगे।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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