विगत एक माह से प्रदेश की जनता देख रही है कि भाजपा व शिवराज सिंह को कई आन्दोलन ने चैन से नहीं बैठने दिया जा रहा है। शिवराज सिंह की आवाज व चेहरे की रोनक बदल गयी है। या यूँ कहे कि जनता काफी समझदार हो गयी है। कोई ज्यादा दिन उल्लू नहीं बना सकता है। यह बात सही भी है कि शिवराज सिंह की विश्वसनीयता कम हो गयी है। हम शिवराज सिंह की नींद हराम करने वालो के विषय मे अवगत करते है:
1.अध्यापक आन्दोलन :-
विगत एक माह से अध्यापकों का जबरदस्त आन्दोलन चल रहा है। जिन अध्यापकों को भाजपा व शिवराज सिंह अपना समझते थे उन्होंने मीडिया, सोशल नेटवर्किंग साइड पर भाजपा अध्यक्ष नन्द कुमार सिंह चौहान, मुख्य मंत्री शिवराज सिंह, भाजपा उपाध्यक्ष रघुनन्दन शर्मा, सरकार के प्रवक्ता व मंत्री नरोत्तम निश्रा की मिटटी कूट दी। भाजपा अध्यक्ष नन्द कुमार सिंह चोहान का भिंड मे अध्यापकों ने खुलेआम पुतला तक जला दिया। इतना सब कुछ होने के बाद भी सरकार व शिवराज सिंह को झुकना पड़ा। अध्यापकों साथ बैठक कर आश्वासन दिया कि शीघ्र मांगो का निराकरण कर दिया जावेगा।
2.पंचायत प्रतिनिधियों का आन्दोलन :-
प्रदेश भर के पंच, सरपंच, जिला/जनपद पंचायत के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्यों ने खुले आम सरकार व शिवराज सिंह के खिलाफ विगुल फूंक दिया। इनके पदाधिकारियों ने शिवराज सिंह को चेतावनी दे डाली कि यदि हमारी मांगे नहीं मानी गयी तो गाँव-गाँव शिवराज सिंह की छवि ख़राब कर दी जावेगी। घबराए शिवराज सिंह ने तुरंत बैठक कर कुछ मांगो की घोषणा कर दी। इसके बाद भी पंचायत प्रतिनिधि आन्दोलन करने तत्पर हैं।
3.किसानों का आन्दोलन :-
कम वर्षा के कारण प्रदेश भर के किसान सोयाबीन नहीं होने से विभिन्न राहत प्रदान करने हेतु सड़क पर उतर गए। सरकार व मुख्यमंत्री ने तुरंत कुछ राहत देकर शांत कर दिया किन्तु सरकारी आंकड़े बता रहे है कि गत वर्ष 15 सितम्बर से 15 अक्टूवर तक जो सोयाबीन की आवक मंडी मे हुई थी, इस वर्ष उसी अवधि मे उससे ज्यादा सोयाबीन की आवक मंडी मे हो गयी। अत: पैदावार नहीं हुई तो मंडी मे इतना सोयाबीन कंहा से आ गया।
तीनों आदोलन से यह स्पष्ट हो गया कि जनता शिवराज सिंह के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकती है।
इसके विपरीत विभिन्न कर्मचारी संघठनो ने मिलकर सयुंक्त मोर्चा का गठन किया गया। जिसमे मुख्य रूप से तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ, राज्य कर्मचारी संघ, शिक्षक संघ, शिक्षक कांग्रेस, कर्मचारी कांग्रेस, लिपिक वर्ग आदि सम्मिलित हुए। इन्होने कर्मचारियों की विभिन्न मांगो के सन्दर्भ मे चरणबद्ध आन्दोलन प्राम्भ कर 30 सितम्वर को सामूहिक अवकाश लिया। कर्मचारी संघों की मुख्य मांगे निम्न रहीं।
(1) सेवा निवृत आयु 62 वर्ष की जावे
(2) पे बैंड रू. 3200 को रू. 3600 व रू. 3600 को रू.4200
(3)शिक्षक संवर्ग को वेतनमान अनुसार पद देनें.
(4) शिक्षक संवर्ग को समयमान वेतनमान
(5) मंत्रालयीन कर्मचारियों के समान अन्य भत्ते आदि
उपरोक्त मांगे जायज है एवम शासन पर कोई अधिक वित्तीय भार नहीं आवेगा। इन कर्मचारी संघो मे से शिक्षक कांग्रेस व कर्मचारी कांग्रेस को छोड़ कर सभी संघठन के पदाधिकारी सरकार व शिवराज सिंह के अटूट भक्त हैं। ये लोग हमेशा सरकार व शिवराज सिंह के गुणगान करते हुए चरण वंदना करते रहते हैं। कर्मचारियों की प्रमुख मांग 50% महंगाई भत्ता मूल वेतन मे जोड़ने की किसी भी संघठन ने नहीं रखी। जिससे सभी कर्मचारियों को प्रतिमाह रू, 6000 से रू. 10000 का नुकसान हो रहा है। दो माह बाद सातवाँ वेतनमान लागू होगा। यह नुकसान ओर बढेगा। इस प्रकार सरकार व शिवराज सिंह ने कर्मचारियों की जायज मांगो की अनदेखी कर दी है। कर्मचारी नेता जो सरकार व शिवराज सिंह के भक्त है कर्मचारियों को गुमराह कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।
अंत मे यही निष्कर्ष निकलता है जो लोग अपने हाँथ मे जूता लेकर खड़ा हो जाता है उसकी सरकार व शिवराज सिंह सुनते है। राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले सरकार व शिवराज सिंह के भक्तों की कोई सुनवाई नहीं होती है। यह कर्मचारी नेता कर्मचारियों को गुमराह कर उनकी पीठ मे छुरा भोंक रहे हैं।
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