कमाऊ पत्नी को भी है भरण-पोषण का अधिकार

अहमदाबाद। पत्नी कमाऊ ही क्यों ना हो और पति बेरोजगार क्यों ना हो परंतु भरण-पोषण का सिद्धांत इससे नहीं बदलता। पति को भरण पोषण देना ही होगा। यह डिसीजन गुजरात हाईकोर्ट ने सुनाया है।

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें आवेदक की याचिका इसी आधार पर खारिज कर दी गई थी। न्यायाधीश जेबी पारडीवाला ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए मामले को फिर से सुनवाई के लिए निचली अदालत के पास भेज दिया है। नोटरी वकील मीना (बदला नाम) का विवाह वकील मनोज (बदला नाम) के साथ मई, 2005 में हुआ था। नवम्बर 2007 में इस दंपती के एक पुत्री हुई। पुत्री के जन्म के एक वर्ष बाद से पति-पत्नी के बीच विवाद होने लगे। वकील प्रभाकर उपाध्याय के मुताबिक मीना ने वर्ष 2011 में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के मेट्रोपोलिटन अदालत में मामला दर्ज किया। इसमें मीना ने खुद के भरण पोषण के लिए प्रतिमाह 12 हजार व बच्ची के लिए 8 हजार रुपए की गुहार लगाई थी। अदालत ने निर्णय सुनाया था कि पत्नी कमाती है इसलिए पति अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार नहीं है। हालांकि कोर्ट ने बच्ची के लिए पांच हजार रुपए का आदेश दिया।

मीना ने इस फैसले को सत्र अदालत में चुनौती दी, लेकिन यहां भी उसकी गुहार खारिज कर दी गई। इसके बाद मीना ने इस पैâसले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने कहा कि दोनों अदालतों ने इस मामले में भारी गलती की, जो घोर अन्याय है। भले ही पत्नी हजारों कमा रही हो, लेकिन पति अपनी पत्नी की कानूनन जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।

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