भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे देश में इतराते घूमते हैं कि उन्होंने मप्र को विकासशील राज्यों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया लेकिन उनके अपने गृहजिले सीहोर में एक गांव ऐसा है जो आजादी के 68 साल बाद भी अंगूठाछाप है। यहां एक भी ग्रामीण साक्षर नहीं है।
मुख्यमंत्री के गृह जिले का हिस्सा होने के बावजूद सिहोर के ढाई सौ की आबादी वाले आदिवासी बहुल गांव सेमलिया पठार में आज भी शिक्षा नहीं पहुंच पाई है। यहां रहने वाला हर व्यक्ति अनपढ़ है। हालत तो यह है कि अगर गांव में किसी के नाम कोई चिट्ठी आती भी है तो वो उसे पढ़वाने के लिए पास के गांव में जाते हैं।
यह गांव किस तरह उपेक्षित है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, यहां के लोग यह तक नहीं जानते की मुख्यमंत्री और कलेक्टर क्या होता है। गांव वालों का कहना है कि उनके बगल के गांवों की हालत उनके गांव से काफी बेहतर है। वहां के बच्चे भी स्कूल जाते हैं जिससे नई पीढ़ी पढ़ी लिखी और जागरुक है लेकिन उनके गांव में ऐसा कुछ नहीं है।
गांव वालों ने बताया कि, सेमलिया से सबसे करीबी स्कूल करीब 7 किलोमीटर दूर है। जहां बच्चों को रोज-रोज भेजना संभव नहीं है। जिस वजह से गांव में साक्षरता नहीं आ पा रही है। हैरानी की बात तो यह है कि इस गांव का नाम आज भी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। जिससे यहां पर मूलभूत सुविधाओं का भी अकाल है। यहां पर पक्की तो छोड़िए कच्ची सड़क भी नहीं है।
पानी लेने के लिए भी ग्रामीणों को काफी दूर जाना पड़ता है। गांव में कई साल पहले हैंडपंप तो लगाया गया लेकिन खराब होने के बाद कोई उसे ठीक करने नहीं आया। वहीं गांव में आज तक बिजली की सुविधा भी नहीं पहुंची है।
ग्रामीणों की मानें तो उनके गांव में आजतक कोई अधिकारी सर्वे करने नहीं आया है। एक बार बस कांग्रेस विधायक शैलेंद्र पटेल वोट मांगने आए थे और सड़क, बिजली, स्कूल आदि जैसी सुविधाओं का वादा कर चुनाव के बाद गायब हो गए।
