विजयादशमी के दिन संघ अपने सफर के 90 साल पूरे कर लिए। वर्ष 1925 में जब भारत अंग्रेजी हुकूमत के चंगुल में था तब विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना हुई थी। बमुश्किल 17 साथियों के साथ ड़ॅा केशव राव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर के मोहित बाड़े में संघ की स्थापना की थी। हेडगेवार ने इतना ही कहा आज हम संघ का प्रारंभ कर रहे है। नागपुर के अखाड़ो से तैयार हुआ आरएसएस आज विराट संगठन के रुप में खड़ा है। संघ के 91 वें स्थापना दिवस पर ये संयोग ही है कि संघ शिक्षित और प्रचारक रह चुके नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं।
कांग्रेस ने की थी मदद
नमस्ते सदा वत्सल मातृभूमे ,मैं तुम्हारी वंदना करता हूं। संघ की प्रार्थना के इन्हीं भावार्थों के साथ पिछले कई सालों से लगातार देश के कोने कोने में संघ की शाखायें लग रही है। कौन सोच सकता है कि कभी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर अंग्रेजी हुकूमत से देश को आज़ाद कराने के लिये कांग्रेस में काम करने वाले ड़ॉ केशवराम बलिराम हेडगेवार एक दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का निर्माण करेंगे। आज संघ और कांग्रेस एक दूसरे के प्रति कोई स्नेह नहीं रखे लेकिन एक समय ऐसा था जब मोहिते बाडे पर संघ की शाखायें निरंतर लगे और संगठन आगे बढ़े इसके लिये कांग्रेस के दिग्गज महामना मदन मोहन मालवीय और विट्ठल भाई पटेल ने हेडगेवार की मदद की थी। 1925 में जब नागपुर के सालूबाई मोहिते के टूटे फूटे मोहिते बाड़े में यह संघ स्थापित हुआ तब हेडगेवार को यह सुनना पड़ा था नागपुर के संतरे पूना में नहीं बिकेंगे।
ये हैं संघ के संस्थापक सदस्य
संघ स्थापना के वक्त हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी समेत प्रमुख लोग ही थे। हालांकि तब तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नाम अस्तित्व में नहीं आया था लेकिन 1925 मोहिते बाडे से शुरूआत को ही प्रामाणिक माना जाता है। शारीरिक, सैनिकीय और राजकीय शिक्षण के सिद्धांत को सर्वप्रथम अपनाये जिसके जरिये नवयुवकों के बीच हिन्दू राष्ट्रवाद और अखंड भारत की शिक्षा दी जा सके। डाक्टर हेडगेवार ने व्यायाम शालायें या अखाडों के माध्यम से संघ कार्य को आगे बढा़या। स्वस्थ और सुगठित स्वयंसेवक होना उनकी कल्पना में था।
नामकरण भी लोकतांत्रिक
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह नाम अस्तित्व में आने से पहला विचार मंथन हुआ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर विचार हुआ। बाक़ायदा वोटिंग हुई नाम विचार के लिये बैठक में मौजूद 26 सदस्यों में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को अपना मत दिया और आरएसएस अस्तित्व में आया।
संघर्षों का रहा लंबा दौर
आरएसएस के पूरे दुनिया में करोड़ों स्वयंसेवक हैं और लाखों की संख्या में वो प्रचारक है जिन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर सर्वस्व आरएसएस के लिये लगा दिया। ख़ुद हेडगेवार ने भी अविवाहित रहकर ही संघ को खड़ा करना का संकल्प लिया था। संघ ने अपने लंबे सफर में कई उपलब्धियां अर्जित की और प्रतिबंध के अपमान का घूंट भी पीया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर को बंदी बनाया गया, फिर सम्पूर्ण देश में स्वयंसेवकों के सत्याग्रह का दौर शुरु हुआ। जो बाद में सच साबित नहीं हुआ। 18 माह बाद संघ से प्रतिबंध हटा और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल का पत्र गोलवलकर को मिला। कुछ समय बाद दिल्ली में पं नेहरू से गोलवलकर मिले।
किसी समय कांग्रेस से भी था मेलजोल
आज संघ का कांग्रेस से भले ही कोई मेल नहीं हो एक ज़माने में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु के आमंत्रण पर आरएसएस के स्वयंसेवकों ने 1963 की 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली परेड में भाग लिया था वो भी गणवेश पहनकर। 1989 में संघ के लंदन में हुये कार्यक्रम में तत्कालीन पीएम मार्गेट थैचर मौजूद रही थी। कहते है कश्मीर प्रकरण में सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर को वहाँ भेजा था, तत्कालीन राजा हरिसिंह को उन्होंने भारत में रहने के लिये समझाया, हरि सिंह का संदेश लेकर वे दिल्ली आये और पटेल को बताया।
राष्ट्र हित सर्वोपरि
आरएसएस संविधान में साफ लिखा है कि हिन्दू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाना है। यह भी लिखा है कि संघ राजनीति से अलिप्त है। यह अलग बात है कि संघ से निकले स्वयंसेवकों ने ही बीजेपी को स्थापित किया। आज देश में आरएसएस की हज़ारों शाखाओं के जरिये हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का संदेश दिया जा रहा है।