धीरज चतुर्वेदी/छतरपुर। भोपाल भले ही दावा करे कि कांग्रेस जुगाडू और दिग्गजों की जेब से बाहर निकल आई है लेकिन यहां तो कहानी वही पुरानी है। कांग्रेस ने यहां के एक ऐसे युवा लेकिन फेलियर नेता को प्रदेश सचिव बना दिया जो विधानसभा चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया था।
बात राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी के चिरंजीव नितिन चतुर्वेदी की हो रही है। अपने वार्ड तक में उनकी कोई खास लोकप्रियता नहीं है। पिताजी ने जुगाड़ लगाकर विधानसभा का टिकिट दिलवाया था। पूरे परिवार ने जोर लगाया लेकिन जमानत तक नहीं बचा पाए।
सवाल यह है कि जब ऐसे चिरंजीवों को कांग्रेस में महत्व मिल रहा है तो जमीनी कार्यकर्ता क्यों काम करेगा और कब तक करता रहेगा। वेंटीलेटर पर पड़ी कांग्रेस का खात्मा सुनिश्चित हो गया।
यहा आपको याद दिला दें कि छतरपुर जिले की चंदला विधानसभा क्षेत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी का गढ माना जाता था।
1993 के विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने 46.15 मत प्राप्त कर भाजपा के ग्याप्रसाद सिंह को 13662 मतो पराजित किया था। तब काग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से खटपट के बाद सत्यव्रत चतुर्वेदी ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था।
इस बार सत्यव्रत चतुर्वेदी ने अपने नौसिखये बेटे नितिन चतुर्वेदी को कांग्रेस से टिकिट दिला दिया। उम्मीद थी कि सत्यव्रत की जमीन उनके बेटे को राजनीतिक फसल देगी। भाजपा ने आयतित प्रत्याशी शैतान सिंह पाल को मैदान मे उतारा। वही सपा से विजय बहादुर सिंह ने एक बार फिर जोर अजमाइश की जब नतीजे सामने आये तो नितिन चतुर्वेदी भी अपनी जमानत गवां बैठे। उन्हे बीएसपी से भी कम वोट मिले और एक बार फिर सपा की झोली मे चंदला बिधानसभा सीट चली गई।
इधर सत्यव्रत चतुर्वेदी भी लोकसभा का चुनाव हार गये। जिस टोरिया हाउस मे राजनीति की तूती बोलती थी। उसका अस्तितव समाप्त होता जा रहा है। इन्ही सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन चतुर्वेदी को कांग्रेस संगठन मे प्रदेश सचिव बना दिया है। राज्य सभा सासंद के पुत्र को संगठन मे प्रदेश सचिव बना देना कांग्रेसियो को रास नही आ रहा है।