राकेश दुबे@प्रतिदिन। चीन ने डॉलर के मुकाबले दो प्रतिशत तक अपनी मुद्रा रन्मिन्बी (मुख्य इकाई युआन) के अवमूल्यन का फैसला लिया है। दरअसल, चीन का इरादा धीमी पड़ती अपनी अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देने का है। लेकिन चीन के इस फैसले से भारतीय शेयर बाजार एक प्रतिशत से अधिक और डॉलर के मुकाबले रुपया 56 पैसे लुढ़क गया। एकदिनी गिरावट के साथ दो साल के निचले स्तर 64.77 रुपए प्रति डॉलर पर गया। रुपया पिछले लगातार छह सत्रों में 1.02 रुपए तक लुढ़क चुका है। पिछले सत्र में यह ३४ पैसे टूटकर 64.21 रुपए प्रति डॉलर पर रहा था।
अमेरिका और अन्य जगहों के नीति-नियंता मुद्रा हेरफेर के रूप में देख रहे हैं। उनके मुताबिक, चीनी निर्यात को विश्व बाजार में बढ़त मिले, इसलिए ऐसा किया जा रहा है। एक कमजोर मुद्रा चीन को विदेशी बाजार में उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अधिक सामान उपलब्ध कराकर लाभान्वित करती है। पिछले कई दशकों में इस देश ने एक उन्नत विनिर्माण उद्योग को विकसित किया और यह सब कुछ युआन के मूल्य को दबाकर ही हो पाया है। चीन की यह नीति अमेरिका में कारोबारी और कामगारों को नुकसान पहुंचाती है। उनके उत्पादों की मांग बाजार में कम हो जाती है। साल 2005 में चीन ने अपनी मुद्रा को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया था और तब से इसमें 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। ताजा अवमूल्यन चीन की अर्थव्यवस्था से जुड़ी चिंता के रूप में सामने आया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का यह मानना है कि चीन की विकास दर इस साल गिरकर 6.8 प्रतिशत रह जाएगी और अगले साल 6.3 प्रतिशत। गौरतलब है कि पिछले साल यह 7.4 प्रतिशत थी।
यूरोप में चीन का निर्यात तेजी से घटा है। इसके पीछे डॉलर के मुकाबले यूरो का गिरना है और पिछले साल रन्मिन्बी की नजर डॉलर पर ही थी। मुद्रा अवमूल्यन की घोषणा में चीन के सेंट्रल बैंक ने कहा कि उसका इरादा है कि बाजार की ताकतें विनिमय दर निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाएं। चीनी अधिकारी हर सुबह सरकारी विनिमय दर का निर्धारण करते हैं। अब सरकार कह रही है कि बाजार में कारोबार के हिसाब से उसकी सरकारी दर होगी। अगर चीन का प्रशासन विदेशी विनिमय बाजार में अपना हस्तक्षेप घटाना चाहता है, तो यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा हो सकता है। लेकिन यह साफ नहीं है कि चीन के अधिकारी यह सब कैसे करेंगे?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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