राकेश दुबे@प्रतिदिन। समान शिक्षा की बात उठा कर अदालत से फैसला लेन वाले गुरूजी को उत्तर प्रदेश सरकार ने बर्खास्त कर घर भेज दिया | यह बर्खास्तगी मूल विषय के वे सवाल पुन: खड़े कर गई है | जिनको सुलझाने के दावे हर सरकार और समिति,आयोगों के नाम पर प्रतिवेदन लिखने वाले नौकरशाह करते रहे हैं |एक तरफ देश में सरकारी स्कूलों का ऐसा ढांचा है जहां बुनियादी सुविधाएं और अच्छे शिक्षक नहीं हैं, तो दूसरी ओर कॉरपोरेट घरानों, व्यापारियों और मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर संचालित ऐसे निजी स्कूलों का जाल फैला हुआ है, जहां विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। इन स्कूलों में अधिकारी वर्ग, उच्च वर्ग और उच्च मध्यवर्ग के बच्चे पढ़ते हैं।
चूंकि इन स्कूलों में दाखिला और फीस आम आदमी के बूते से बाहर है, लिहाजा निम्न मध्यवर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वाले लोगों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल ही बचते हैं। देश की एक बड़ी आबादी सरकारी स्कूलों के ही आसरे है। फिर वे चाहे कैसे हों। इन स्कूलों में न तो योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। इन स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई की असलियत स्वयंसेवी संगठन प्रथम की हर साल आने वाली रिपोर्ट बताती है। इन रिपोर्टों के मुताबिक कक्षा चार या पांच के बच्चे अपने से निचली कक्षा की किताबें नहीं पढ़ पाते। सामान्य जोड़-घटाना भी उन्हें नहीं आता।
बड़े अफसर और वे सरकारी कर्मचारी जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है, अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने की अनिवार्यता न होने से ही सरकारी स्कूलों की दुर्दशा हुई है। जब इन अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते, तो उनका इन स्कूलों से कोई सीधा लगाव भी नहीं होता। वे इन स्कूलों की तरफ ध्यान नहीं देते।
सरकारी कागजों पर तो इन स्कूलों में सारी सुविधाएं मौजूद होती हैं, लेकिन यथार्थ में कुछ नहीं होता। जब उनके खुद के बच्चे यहां होंगे, तभी वे इन स्कूलों की मूलभूत आवश्यकताओं और शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने की ओर ध्यान देंगे। सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, जजों और सरकारी खजाने से वेतन या मानदेय प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से जब सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे, तो निश्चित तौर पर पूरी शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव होगा। वे जिम्मेदार अफसर जो अब तक इन स्कूलों की बुनियादी जरूरतों से उदासीन थे, उन्हें पूरा करने के लिए प्रयासरत होंगे। अपनी ओर से वे पूरी कोशिश करेंगे कि इन स्कूलों में कोई कमी न हो। सर्वोच्च न्यायलय में भी शायद इस पर मतभेद हो जाये | राजनीतिक सम्प्रभु संविधान बदलने की कोशिश करे पर देश के लिए समान शिक्षा जरूरी है |