भोपाल। पिछले तीन महीने से अस्पताल में भर्ती आयुषी हिमथानी के पास सिर्फ एक ही सवाल है, वो केवल इतना जानना चाहती है कि आखिर वो अंकल कौन थे जो पीली बत्ती वाली कार चला रहे थे और मुझे तड़पता छोड़कर भाग गए।
आयुषी बताती है कि
मेरे पापा को सेरिब्रल एट्रोपी है। वह गाड़ी नहीं चला सकते। उन्हें ऑफिस छोड़ने-लाने से लेकर फिजियोथेरेपी के लिए भी मुझे ही ले जाना होता था। बीमार पापा की मदद के लिए ही मैं मुंबई से पढ़ाई छोड़कर भोपाल आई थी। 6 अगस्त की सुबह 6.30 बजे बोर्ड ऑफिस चौराहे पर रांग साइड से आ रही एक पीली बत्ती की कार ने मेरी गाड़ी को इतनी जोर से टक्कर मारी कि मैं उछलकर कार के बोनट पर जा गिरी। मेरी एक्टिवा दूर जा गिरी। मैं तड़पती रही और कार में बैठे अंकल कार छोड़कर भाग गए। राहगीरों ने मुझे अस्पताल पहुंचाया। अब तीन महीने के लिए बिस्तर पर हूं...।'
मुझे जितना दुख अपने साथ हुए हादसे को लेकर है, उससे ज्यादा रंज उन अंकल के जमीर पर है, जो मुझे तड़पता हुआ छोड़कर भाग गए। कम से कम मुझे अस्पताल तक तो पहुंचा देते।
पुलिस ने एफआईआर लिख ली है, लेकिन एक्शन नहीं ले पा रही है। पुलिस कहती है कि एक्सीडेंट के केस में गिरफ्तारी का प्रावधान नहीं है। पुलिस को तो अब तक यह भी पता नहीं है कि उस वक्त कार कौन चला रहा था। निश्चित तौर पर किसी ड्रायवर पर आरोप मढ़ दिया जाएगा। पुलिस के लिए मेरे बयानों का भी कोई मतलब नहीं है। कई बार कहने के बाद तो वे एफआईआर लिखने पर राजी हुए। पुलिस ने एफआईआर में आरोपी का नाम एमपी-02 आरडी-0099 का चालक लिखा है। जबकि पुलिस के पास वहां के सीसीटीवी के फुटेज हैं। पुलिस उन्हें बचाने की कोशिश कर रही है।
अस्पताल आकर सॉरी तो बोल देते
‘आयुषी कहती हैं कि यदि कोई अफसर ही इतना असंवेदनशील होगा तो लोग किस पर भरोसा करेंगे। एक्सीडेंट के बाद मैं इतने दिन अस्पताल में भर्ती रही, कम से कम वहां आकर मुझे सॉरी ही बोल देते। मैं कोई उनसे अपने इलाज का खर्च थोड़े ही मांग रही थी। यदि उनके बच्चे के साथ ऐसा होता तो उन पर क्या गुजरती। वो अफसर पुलिस से लगातार संपर्क में रहे लेकिन एक बार भी मेरा हाल जानने की कोशिश नहीं की।’
आयुषी को थाई में फ्रेक्चर है। उनका ऑपरेशन हुआ है। डॉक्टर ने उन्हें तीन महीने आराम की सलाह दी है।