भोपाल। दिनांक 15 अगस्त 1947 जब देश आजाद हुआ और पूरे देश में शान से तिरंगा लहराया गया, तब भोपाल रियासत में ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां कोई तिरंगा नहीं लहराया गया। वो इसलिए क्योंकि यहां का नवाब भोपाल को पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था परंतु ऐसा नहीं हो सका और 1 जून 1949 को भोपाल का भारत में विलय हो गया। तब जाकर यहां तिरंगा लहराया गया।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की पहचान आज भी नवाबों के शहर के रूप में होती है। यहां नवाबों का राज रहा है और इनकी सल्तनत अंग्रेजों के इशारे पर चलती थी। रियासत की स्थापना 1708-1740 में औरंगजेब की सेना के योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत कर की थी। 1728 में दोस्त मोहम्मद खान की मौत के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान भोपाल रियासत के पहले नवाब बने।
राजा भोज ने दी पहली पहचान
इससे पहले भोपाल शहर की स्थापना ऐसा समझा जाता है कि भोपाल की स्थापना परमार राजा भोज ने 1000-1055 ईस्वी में की थी। उनके राज्य की राजधानी धार थी, जो अब मध्य प्रदेश का एक जिला है। शहर का पूर्व नाम 'भोजपाल' था जो राजा भोज और राजा पाल के संधि से बना था। परमार राजाओं के अस्त के बाद यह शहर कई बार लूट का शिकार बना। दोस्तखान ने भी इसे लूटा और फिर इसे अपनी रियासत भी बनाया।
गोंडरानी ने बुलाया था
ओरंगजेब की मृत्यु के बाद की अफ़रातफ़री में जब दोस्त खान दिल्ली से भाग रहा था, तो उसकी मुलाकात गोंड रानी कमलापती से हुई जिसने दोस्त खान से मदद माँगी। वह अपने साथ इस्लामी सभ्यता ले कर आया जिसका प्रभाव उस काल के महलों और दूसरी इमारतों मे साफ़ दिखाई देता है।
4 बेगमों ने किया राज
आज़ादी के पहले भोपाल, हैदराबाद के बाद सबसे बड़ा मुस्लिम राज्य था। सन् 1819 ईस्वी से ले के 1926 ईस्वी तक भोपाल का राज चार बेगमों ने संभाला। कुदसिया बेगम सबसे पहली महिला शासक बनीं। वे गौहर बेगम के नाम से भी मशहूर थीं। उनके बाद, उनकी इकलौती संतान, नवाब सिकंदर जहां बेगम शासक बनीं। सिकंदर जहां बेगम के बाद उनकी पुत्री शाहजहाँ बेगम ने भोपाल रियासत की बागडोर संभाली। अंतिम मुस्लिम महिला शासक पुत्री सुल्तान जहां बेगम थीं। बाद में उनके पुत्र हमीदुल्ला खान गद्दीनशीं हुए, जिन्होंने मई 1949 तक भोपाल रियासत के विलीनीकरण तक शासन किया। बेगमों के राज मे भोपाल राज्य को रेलवे, डाक-विभाग जैसे अनेक उपहार मिले। सन् 1903 मे नगर निगम का भी गठन हुआ।