पुस्ताकोत्सव: परीक्षा आयोजकों की होनी चाहिए या मास्टरों की ?

राज्य शिक्षा केंद्र एक ओर तो टीचर्स की परीक्षा की तैयारी कर रहा है दूसरी और स्वयं राज्य शिक्षा केंद्र को व उसके शैक्षिक अमले को परीक्षा व अध्धयन की महती आवश्कता प्रतीत होती है। इसका एक उदहारण इसी सत्र में पुस्तक छपाई में की जाने वाली लापरवाही व गुणवत्ता युक्त छपाई को ठेंगा दिखा रहा है। इसी वर्ष छपाई गई कक्षा 5वीं की गणित विषय के मुख्य पृष्ठ पर गणितीय भिन्न की संख्या में गलती कर दी गई। जिसपर टीचर्स की परीक्षा लेने वालो का ध्यान ही नही गया एवं विगत सत्रों में भी पुस्तकोे में कई पाठ या तो कई बार छाप दिए गए और कई पाठ उपलब्ध ही नही होते  है एवं कागज़ की क्वालिटी भी कुछ ख़ास उत्तम नही होती अब सवाल ये उठता है की राज्य शिक्षा केंद्र पुस्तको की गुणवत्ता के प्रति गंभीर है या सिर्फ छपाई के प्रति ? और जो बुद्धिजीवी टीचर्स की परीक्षा लेने की तेयारी कर रहे है उनकी नजर कक्षा 5वीं की गणित विषय की पुस्तक पर क्यों नही पड़ी ??

एक और तो बे मतलब की टीचर्स की परीक्षा करवाने की तेयारी में "पुस्ताकोत्सव" में लम्बा चौड़ा बजट खर्च कर रहा है वही दूसरी और राजधानी भोपाल तक में कक्षा 1 से 4 की पुस्तके आज दिनांक तक उपलब्ध ही नही करवा पाया है।

अब गौरतलब बात ये है की दिनांक 22 जुलाई को इस अनावश्यक पुस्ताकोत्सव का आयोजन कर रहा है। जिसमे कक्षा 1 से आगामी कक्षा तक का कोर्से आना सम्भावित् है। वहीं दूसरी और आजतक शालाओं को पुस्तकें उपलब्ध ना कर पाने से सम्बंधित शालाओं में शिक्षण कराने वाले शिक्षक एक दूसरे का मुह ताक रहे हैं। वही बच्चे भी प्रतिदिन पुस्तको की मांग कर रहे है।

अब अचानक से इस पुस्ताकोत्सव के आयोजन के पीछे केंद्र की जो क्या मंशा है वो भी पुस्तकों के आभाव में पूर्ण होते दिखाई नही देती यहाँ एक प्रश्न और उठता है की एक और तो कक्षा 1 से 8 तक किसी भी बच्चे को फ़ैल ना करने की बात की जाती है। वही दूसरी और जो शिक्षक/अध्यापक पूर्व से ही डी-एड/बी-एड स्नातक/स्नातकोत्तर व अन्य की डिग्री लेकर और एक जटिल प्रक्रिया पूर्ण कर शिक्षा विभाग व अन्य में नियुक्त हुए है। अब पुनः उनकी दक्षता की परीक्षा कर किस तरह की नवीनता का बोध कराया जाना है ये समझ से परे है।

यदि बजट अधिकता इस आयोजन का मकसद है तो क्यों ना इस तरह के कार्यो को ना करते हुए पुस्तको के साथ गरीब बच्चो को कॉपी भी उपलब्ध करवा दी जाए ताकि गरीब बच्चे वर्ष भर माता-पिता के कॉपी ना लाने की समस्या से मुक्त हो व उनमे लेखन की अभिक्षमता का विकास हो।

जबकि इस पुस्ताकोत्सव के आयोजन से होना जाना कुछ है नहीं पहले आयोजन फिर मूल्यांकन फिर प्रशिक्षण मतलब लम्बे चोड़े बजट की आहुति वो भी बिना किसी स्थाई सुधार के क्युकी शैक्षिक प्रशिक्षणो के आयोजन करना कोई नई बात नही जब देखो तब कभी व्यवसायिक,कभी ए. बी. एल./ए.एल.ऍम के प्रशिक्षण होते ही रहते है जिसमे कई वर्षो से लाखो रुपए खर्च किये जाते रहे है। इनके अलावा अब केंद्र को पुस्ताकोत्सव की आवश्कता क्यों हुई ये बात भी सोच से परे है।

राज्य शिक्षा केंद्र मध्यप्रदेश यदि सही ढंग से शासकीय स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता बढाना चाहता है तो उसको किसी तरह के आयोजनों से बचते हुए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-

1. वर्तमान में जो बुनियादी शिक्षा हेतु बिना जमीनी टीचर्स का फीडबैक लिए ए.सी.रूम में बैठकर  कुछ विशेष बुद्धिजीवियों ने जो दक्षता/ए.बी.एल./ए.एल.एम. जैसी बुनियादी शिक्षा को उखाड़ फेकने वाली विधियों को सरकारी स्कूलों पर थोपा है सबसे पहले उनको तत्काल प्रभाव से बंद कर प्राथमिक व माध्यमिक मास्टरों को स्व-विधिनुसार शिक्षण कराने की स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए ताकि बच्चा और मास्टर बिना किसी दवाब के व बिना किसी उलझाऊ विधि के पूर्व वर्षो की भाँती पट्टी पहाड़े व सिलेट बत्ती या मास्टर की स्व-विधि के माध्यम से अपनी बुनियाद पक्की कर सकें।

2.प्रतिवर्ष उत्तीर्ण करने की बाध्यता समाप्त कर उत्तीर्ण/अनुत्तीर्ण करने का अधिकार मास्टरों को प्रदान किया जाना चाहिए।

3. कक्षा 1 से 4 तक की पुस्तको की छपाई में कम से कम अध्याय में समस्त कौशलो को पट्टी पहाड़े की भाँती कम पृष्ठ में रंगीन चित्रों युक्त छोटे बच्चो की मानसिक आयु अनुसार निजी स्कूलों में प्रचलित पुस्तको की भाँती छापी जानी चाहिए। ना की मोटी मोटी अभ्यास पुस्तके जो बच्चे घर ना ले जाने की बाध्यता के कारण घर ले जाकर पुनः अध्धयन नही कर सकते।

4. बजट अनुसार योजनाये ना बनाई जाए बच्चो के अनुसार व जमीनी मास्टरों की विधि अनुसार ही योजना लागू हो जो काम एक पट्टी पहाड़े से हो सकता है उसके लिए लाखो करोडो के गतिविधि कार्ड छपवाने की व लोहे की अलमारी प्लास्टिक की ट्रे लेडर लोगो व अन्य कई तरह की स्टेशनरी खर्च ना किया जाए।

5. आज मास्टर कम से कम 20 तरह के गैर शैक्षणिक कार्यो में विभाग द्वारा उलझाया गया है अतः वो चाहकर भी अपना 100% नहीं दे पाता व इन गैर शैक्षणिक कार्यो के मकड़ जाल में ऐसा उलझा रहता है की शैक्षणिक कार्य हेतु समय ही नही निकाल पा रहा है अतः केंद्र को मास्टरों को पूर्ण रूप से गैर शैक्षणिक कार्यो से मुक्ति दिलवानी चाहिए ताकि शैक्षणिक कार्य शैक्षणिक केलेंडर अनुसार 100% परिणित की जा सके।

6.यदि किसी तरह की योग्यता की परीक्षा लेनी है तो नियुक्ति अवधि के दौरान ही ली जावे ना की नियुक्ति होने,, नियमित होने,, और वर्षो सेवा देने,,व रिटायरमेंट की कगार पर आयोजित की जाए।

आपका मित्र
मुश्ताक खान
भोपाल।
मोबाइल नंबर-9179613685

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