इंदौर। मप्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध शुरू हो गया है। शिक्षक संगठनों ने ही इसके विरोध में आवाज बुलंद की है, जबकि अभी तो शिक्षा नीति के लिए परिचर्चाओं का दौर ही शुरू हुआ है। संगठनों का कहना है कि ऐसी परिचर्चा किस काम की जिसमें संगठनों ही नहीं बुलाया गया।
दरअसल, गुरुवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर प्रीतमलाल दुआ सभागार में परिचर्चा का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में बकायदा शिक्षा मंत्री पारस जैन शामिल हुए। परिचर्चा पर मप्र तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रांतीय महामंत्री हरीश बोयत का कहना है कि ऐसी परिचर्चा किस काम की जिसमें शिक्षक संगठनों को नहीं बुलाया गया हो।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अपनी राय देने के लिए प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों और शिक्षक पालक समिति के पदाधिकारियों को बुलाया जाना था। जिनके माध्यम से यह पता चलता है कि गरीब के बच्चों को किस तरह की शिक्षा चाहिए, उन्हें क्या जरूरत है। अभी जो नीति तैयार हो रही है उसमें क्या संशोधन कर सकते हैं, लेकिन इन विषयों पर कोई चर्चा ही नहीं की गई।
शासकीय अध्यापक संघ के जिला अध्यक्ष प्रवीण यादव का कहना है कि बैठक में प्राचार्य और व्याख्याताओं को ही बुलाया गया था, जबकि इसमें उन सभी लोगों की हिस्सेदारी होना थी जो शिक्षा को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। मामले में जिला शिक्षा अधिकारी किशोर शिंदे का कहना है कि परिचर्चा में प्राचार्यों और व्याख्याताओं को बुलाया गया था। इनके सुझावों को भी पहुंचा दिया जाएगा।