महेश देवड़ा. “ प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को नया स्वरूप देने के लिए राज्य शासन एतद्द्वारा ‘राज्य शिक्षा सेवा’ का गठन तत्काल प्रभाव से किया जाता है ।’’
25 जुलाई 2013 को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा उपरोक्त शब्दो के साथ प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था मे आमूल चूल परिवर्तन की घोषणा करते हुए राज्य शिक्षा सेवा के गठन का राजपत्र जारी किया गया था । वर्तमान मे भी सब पढ़े सब बढ़े , सबके लिया शिक्षा जैसे बड़े बड़े नारो ओर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के दावों के साथ नवीन शिक्षण सत्र पुरानी समस्याओं के साथ शुरू हो चुका है।
लेकिन दो वर्षों का समय बीतने पर भी राज्य शिक्षा सेवा कही अस्तित्व मे नजर नहीं आ रही है । ये एक कटु सत्य है की शिक्षा की दशा ओर दिशा मे सुधार की बहुप्रचारित बहुचर्चित इस महत्वपूर्ण योजना को लागू करने मे सरकार ओर शिक्षा विभाग पूर्णत असफल रहा है । ये स्थिति भी तब है जब विधानसभा चुनाव के बाद राज्य शिक्षा सेवा के गठन को शिक्षा विभाग की सों दिवसीय दिवसीय कार्ययोजना मे सम्मिलित किया गया था । पर आज तक राज्य शिक्षा सेवा का धरातल पर ना उतरना सरकार एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों की इस महत्वाकांक्षी योजना के प्रति उदासीनता ओर शिक्षा सुधार की इच्छा शक्ति के अभाव को ही प्रदर्शित करती है।
मूलतः राज्य शिक्षा सेवा का गठन मध्य प्रदेश की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था संबंधी अधिकारों ओर कर्तव्यों के विभिन्न विभागो मे बिखरें होने से उत्पन्न व्यावहारिक समस्याओं के समाधान के रूप मे किया गया था । वर्तमान मे शिक्षा संबंधी कार्य , अधिकार एवं कर्तव्य शिक्षा विभाग , पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग , आदिवासी विकास विभाग तथा नगरीय प्रशासन विभाग मे बिखरें एवं उलझी हुई स्थिति मे है । इन सब समस्याओं का समाधान ओर विभाग को एकरूपता प्रदान करना ही राज्य शिक्षा सेवा का उद्देश्य था।
इस प्रक्रिया की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के रूप मे मैदानी स्तर पर क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी (AREA EDUCATION OFFICER–AEO) के नवीन पदो का सृजन राज्य शिक्षा सेवा मे किया गया था । एईओ का यह पद ही राज्य शिक्षा सेवा के उद्देश्यों की पूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है । परंतु आज लगभग 2 वर्ष बीतने पर भी विभाग इन पदो पर नियुक्ति नहीं कर पाया है । एईओ के इन पदो पर नियुक्ति परीक्षा के माध्यम से करने के लिए ही विभाग द्वारा सर्वप्रथम सितंबर 2013 मे ऑनलाइन परीक्षा का आयोजन किया गया था । तब से ही यह पद ओर इसकी नियुक्ति प्रक्रिया विवादों के घेरे मे रही है । परीक्षा के पश्चात जल्द ही विभाग द्वारा नियुक्ति हेतु परिणाम घोषित कर मेरिट प्राप्त अभ्यर्थियों के दस्तावेजो का सत्यापन कार्य भी क्रमशः तीन वरीयता सूचियाँ जारी कर, कर लिया गया था । परंतु इसी बीच विभिन्न कर्मचारी संगठनों तथा शिक्षक संवर्गों द्वारा इस भर्ती प्रक्रिया के विरुद्ध एवं परीक्षा निरस्त करने की मांग करते हुए माननीय उच्च न्यायालय मे अनेक याचिकाएं प्रस्तुत की गयी ।
फलतः अंतिम नियुक्ति होने से पूर्व ही प्रक्रिया को रोक दिया गया । एक वर्ष न्यायालय मे प्रकरण चलने के बाद 8 सितंबर 2014 को दिये अपने निर्णय मे उच्च न्यायालय ने लगभग 100 याचिकाओं को खारिज करते हुए राज्य शिक्षा सेवा के गठन ओर एईओ परीक्षा को वैध ठहराते हुए भर्ती प्रक्रिया को रोकने से इंकार करते हुए परीक्षा रद्द करने की मांग भी ठुकरा दी , साथ ही शासन को अंतिम परीक्षा परिणाम घोषित कर चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति प्रक्रियाँ पूर्ण करने का निर्देश दिया । इस निर्णय मे माननीय न्यायालय द्वारा अनुभव संबंधी अंको की गणना हेतु भी दिशा निर्देश विभाग को दिये गए थे । इस न्यायालय आदेश के परिप्रेक्ष्य मे शिक्षा विभाग द्वारा द्वारा एक बार पुनः परीक्षा मे सम्मिलित समस्त पात्र 19860 अभ्यर्थियों के अनुभव एवं आवश्यक दस्तावेजो का सत्यापन जनवरी 2015 मे किया गया ।
इस के पश्चात ये आशा बंधी थी की शायद अब राज्य शिक्षा सेवा धरातल पर उतरेगी ओर प्रदेश की खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था मे प्रशासनिक कसावट एवं अकादमिक गुणवत्ता का नवीन अध्याय शुरू हो सकेगा । परंतु शिक्षा विभाग एवं लोक शिक्षण संचालनालय के अधिकारियों की ढुलमुल ओर विरोधाभासी नीतियों के चलते आज तक नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण नहीं की जा सकी है । यह आश्चर्य का विषय है की माननीय न्यायालय द्वारा भर्ती प्रक्रिया के पक्ष मे निर्णय होने के बावजूद भी विभागीय अधिकारी राज्य शिक्षा सेवा को लागू करने से पीछे हट रहे है । इसी बीच कई विरोधाभासी एवं विसंगतिपूर्ण आदेश एवं निर्देश अधिकारियों द्वारा जारी किये जाते रहे है । अनुभव अंको का विवाद भी अधिकारियों द्वारा जारी विरोधाभासी आदेशों के कारण ही उत्पन्न हुआ है । जबकि सम्पूर्ण न्यायालयीन प्रकरण मे अनुभव अंको पर कोई विवाद नहीं था । जान बूझकर किए जा रहे विलंब एवं त्रुटिपूर्ण आदेशों से अधिकारियों की मंशा एवं राज्य शिक्षा सेवा लागू करने की इच्छाशक्ति पर गंभीर प्रश्न उठते है ।
इन परिस्थितियों मे एईओ भर्ती मे किए जा रहे अनावश्यक विलंब ओर माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं होने से क्षुब्ध परीक्षा मे चयनित एवं नियुक्ति का इंतजार कर रहे अध्यापको द्वारा पुनः न्यायालय की शरण ली गयी । ओर विभागीय अधिकारियों के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना याचिका प्रस्तुत की गयी है । हाल ही मे समाचार पत्रों मे प्रकाशित खबरों के अनुसार इस अवमानना याचिका के जवाब मे शासन ने एईओ नियुक्ति मे देरी को स्वीकार करते हुए जल्द नियमानुसार प्रक्रिया पूर्ण करने का भरोसा माननीय न्यायालय मे दिया है । परंतु अभी भी भर्ती की समय सीमा तय नहीं की गयी है ।
इस पूरे प्रकरण मे यह आश्चर्यजनक स्थिति है की शासन अपनी ही महत्वाकांक्षी एवं शिक्षा सुधार की इस महत्वपूर्ण योजना को धरातल पर उतारने मे इतनी निष्क्रियता ओर असमंजस क्यो दिखा रहा है ? इसके लिए माननीय न्यायालय को इस पर बार बार निर्देशित करना पड़ रहा है । शिक्षा व्यवस्था को नया स्वरूप देने ओर विभागीय एकरूपता की दृष्टि से राज्य शिक्षा सेवा का पूर्णतः लागू होना अत्यंत आवश्यक है । शिक्षा व्यवस्था मे सुधार की इस महत्वपूर्ण एवं दूरगामी परिणामो वाली योजना को जल्द धरातल पर उतारने के लिए स्वयं शिक्षा मंत्री एवं माननीय मुख्यमंत्री महोदय को पहल करना चाहिए । जिससे गुणवततापूर्ण शिक्षा ओर शिक्षित मध्यप्रदेश की दिशा मे आगे बढ़ा जा सके ।
महेश देवड़ा
अध्यापक
कुक्षी 20-07-2015
कुक्षी जिला धार मध्यप्रदेश