नईदिल्ली। मोदी सरकार जेलों या थानों में बंद अपराधियों के प्राइवेट पार्ट्स के सैंपल्स जमा करने वाली है। इससे फायदा यह होगा कि अपराधी चाहे कैसी भी सर्जरी करवाकर अपना रंग, रूप और चेहरा बदल ले, लेकिन उसे आसानी से पहचान लिया जाएगा, परंतु सरकार के इस प्रयास का विरोध भी शुरू हो गया है।
विवाद क्यों
बिल में कहा गया है कि जिंदा लोगों के शरीर के प्राइवेट हिस्से से भी डीएनए प्रोफाइलिंग के सैंपल्स लिए जाने की मंजूरी हो। बटक्स (कूल्हे) और महिलाओं से जुड़े मामलों में ब्रेस्ट्स से सैंपल्स लेने की भी बात कही गई है। इंटिमेट फोरेंसिक प्रोसिजर में प्राइवेट पार्ट्स के एक्सटर्नल एग्जामिन (बाहरी परीक्षण) के अलावा प्यूबिक हेयर्स से सैंपल्स लेने की भी इजाजत होगी। न केवल सैंपल लिया जाएगा, बल्कि उस हिस्से की फोटो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी छूट होगी। इस बिल से प्राइवेसी (निजता) पर खतरा बढ़ने की आशंका जताई गई है।
DNA बिल की जरूरत क्यों
अपराधी अब चाहे प्लास्टिक सर्जरी करवा ले या फिर किसी एडवांस मेडिकल फैसिलिटी से रंग-रूप बदल ले, कानून की निगाह से बच नहीं पाएगा। इस बिल को अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए भी लागू करने की बात कही जा रही है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि फोरेंसिक प्रोसिजर केवल ऑफेंडर (सजायाफ्ता) ही नहीं, बल्कि उस पर भी लागू होगा जो बड़े मामलों में अंडरट्रायल हो। बिल में यह भी कहा गया है कि डीएनए प्रोफाइल के लिए कलेक्ट की गई जानकारियों का इस्तेमाल जनसंख्या आंकड़ों को कंट्रोल करने के लिए किया जाएगा।
सभी राज्यों में डेटा बैंक बनाने की बात
बिल में बायोलॉजिकल नमूनों के बेहतर इस्तेमाल की जरूरत पर जोर दिया गया है। साथ ही, सभी राज्यों में डेटा बैंक बनाने की बात कही गई है। चूंकि यह बेहद जटिल टेक्नोलॉजी है लिहाजा इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। इसके लिए सरकार ने बचने के उपाय भी बताए हैं।
लीगल एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल
वहीं, एक्सपर्ट कमेटी की मेंबर लीगल एक्सपर्ट्स उषा रामानाथन और सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के डायरेक्टर, सुनील अब्राहम ने इस बिल के मसौदे के खिलाफ असंतोष जाहिर किया था। रामानाथन के अनुसार, डीएनए डाटाबेस के काम करने में कई सारी चुनौतियां हैं। जिस किस्म की टेक्नोलॉजी पर यह काम करता है, उसे देखते हुए इसे जमीनी हकीकत में तब्दील करना बेहद मुश्किल है।