ग्वालियर। जेएएस में दान की गईं आखों को कचरे में फैंकने के मामले में जब जूनियर डॉक्टरों की गर्दन फंसने लगी तो उनकी एसोसिएशन आ गई, सबकुछ सच सच बोलने। प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने सीनियर डॉक्टरों को धमकाते हुए कुछ खुलासे किए हैं।
उन्होंने बताया है कि नेत्र विभाग के चिकित्सक मरीजों को बाहर का लैंस लगाने के लिये जूनियर डाॅक्टरों से दबाव बनवाते थे, लैंस लगाने के एवज में 50 हजार रू. कमीशन मिलता था। इतना ही नहीं दान में मिलने वाली आंखें लगाने में सीनियर डाॅक्टरों की रूचि नही थी। आंखें फ्रीज में रखे-रखे खराब हो जाती थीं। मामला खुलने पर जूनियर डाॅक्टरों पर आरोप लगाया जा रहा है।
जूनियर डाॅक्टर एसोसियेशन ने पत्रकारवार्ता कर खुलासा किया तथा एकतरफा कार्यवाही पर प्रदर्शन की चेतावनी दी। पत्रकारवार्ता में आई बैंक बिना निरीक्षण एवं जांच प्रक्रिया के चलाया जाना बताया तथा 2 वर्ष में किसी भी छात्र को आंखें रिसर्च के लिये नहीं दी गईं, फिर 99 जोड़ी आंखें किस रिसर्च के लिये दी गईं। सीनियर डाॅ0 बाहर की वह दवा लिखवाने को दबाव बनाते हैं जिस कम्पनी से उनका करार होता है। जो पीजी व दवा नहीं लिखते उन्हें फैल करने की धमकी दी जाती थी। नेत्र रोग विभाग के चिकित्सक मरीजों के कैटीना की जांच के लिये अपने घर भेजने पर दबाव बनाते थे।
