राकेश दुबे@प्रतिदिन। असम में हिंदी भाषियों का विरोध हो रहा है, हत्याएं हो रही है | गृह मंत्री राजनाथ सिंह फोन पर बात कर प्रकरण की इति श्री मान लेते हैं | दिल्ली में पिछले साल अरुणाचल प्रदेश के नीडो तानिया की हत्या से सारे देश का सिर झुक गया था| अफसोस कि अपने ही देश के पूर्वोत्तर राज्यों के लोग नस्लभेदी टिप्पणियों को सुनने के लिए अभिशप्त हैं| इन्हें नेपाली, जापानी, चीनी तक कहा जाता है| दिमागी दिवालियापन का चरम है यह मानसिकता| अपने ही देशवासियों को हम पहचान नहीं पा रहे. असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड और सिक्किम से आनेवाले लोगों को शेष भारत के लोग अपने से अलग मानते हैं| आम भारतीय के लिए अरुणाचल, असम, नगालैंड, मिजोरम में फर्क कर पाना मुश्किल होता है, क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के प्रति आम उत्तर व दक्षिण भारतीयों की जानकारी बहुत ही कम है| दूसरी तरफ शेष भारत का पूर्वोत्तर को लेकर रुख बेहद ठंडा रहता है|
पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम तथा मणिपुर में दशकों से जिस तरह से हिंदीभाषियों को मारा जा रहा है, उस पर केंद्र तथा राज्य सरकारों को मिल कर साझा रणनीति बनानी होगी. ये हिंदीभाषी पूर्वोत्तर में दशकों से बसे हुए हैं| उन क्षेत्रों के विकास में इनकी अहम भूमिका रही है| उन्हें मारा जाना, क्योंकि वे हिंदीभाषी हैं, उसी तरह से गंभीर मसला है, जैसे देश के दूसरे भागों में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव होना| असम तथा मणिपुर में हिंदीभाषियों की तादाद अच्छी-खासी है| इनमें मारवाड़ी समाज और यूपी-बिहार के लोग हैं|गुवाहाटी का मारवाड़ी युवा सम्मेलन राज्य में विद्यालयों, चिकित्सालयों, पुस्तकालयों, धर्मशालाओं आदि का निर्माण कर रहा है. इन राज्यों में यूपी, बिहार तथा हरियाणा से जाकर लोग बसे हुए हैं|अब इनका अपने पुरखों के सूबों से सिर्फ भावनात्मक संबंध ही रह गया है, वे अब सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से असमिया या मणिपुरी बन चुके हैं.
पिछले साल जनवरी में असम के कोकराझार में पांच हिंदीभाषियों को बस से उतार कर गोली मार दी गयी थी. उस हमले में तीन अन्य घायल भी हुए, जो बिहार से थे| हमारा मीडिया पूर्वोत्तर में उग्रवादियों के हाथों मारे जानेवाले हिंदीभाषियों के मसले को शिद्दत से नहीं उठाता| तमाम खबरिया चैनलों के लिए खबरों का मतलब महानगरों में होनेवाली घटनाओं से ही होता है| केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों को भी जागने की जरूरत है| किसी घटना के बाद गृह मंत्री का राज्य के मुख्यमंत्री से फोन पर बात करना काफी नहीं माना जा सकता|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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