राकेश दुबे@प्रतिदिन। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आकलन के अनुसार दुनिया भर में 1.3 अरब से ज्यादा लोगों की बिजली तक पहुंच नहीं है और 2.56 अरब महिलाएं जैव ईंधन की मदद से भोजन पकाती हैं, जिसके धुएं के चलते सांस से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या भी खासी बढ़ी है। जनगणना के आंकडॉन के अनुसार भारत में 40 करोड़ लोगों की बिजली तक पहुंच नहीं है। ऊर्जा क्षेत्र के कुप्रबंधन के चलते विभिन्न उत्तर भारतीय राज्यों में बिजली के अनधिकृत उपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
इससे बिजली के उपयोग के सही आंकड़े जुटाना भी संभव नहीं होता है| ग्रामीण भारत में 37.8 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सबसे बदतर हालत है। जबकि एनएसएसओ के 69वें चरण के आंकड़ों की मानें, तो ग्रामीण भारत में ऐसे लोगों की संख्या 16.66 करोड़ है।
गांवों में जहाँ बिजली है, वहां उसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़े होते हैं। घंटों तक बिजली नहीं आती, और जब आती है, तो वोल्टेज की दिक्कत। ऐसे में, गांव वालों को बिजली के भारी बिल के भुगतान से ज्यादा सुविधाजनक सरकारी कनेक्शन को बंद कर अवैध तरीके से बिजली का उपयोग होता है | ऐसे में क्या किया जाये ?
पहला, केंद्र और राज्य सरकारों को बिजली की सार्वभौमिक पहुंच बनाने के लिए प्रतिबद्धता दिखानी होगी। बिजली संकट से सबसे ज्यादा त्रस्त राज्यों को अतिरिक्त संसाधन देने और बिजली के पारेषण व वितरण की व्यवस्था को पुख्ता बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को उठानी चाहिए। इसके अलावा गांवों में बिजली की लाइनों और ट्रांसफॉर्मरों की क्षमता बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए।दूसरा, हर गांव में रोशनी की व्यवस्था के लिए बिजली की अलग लाइनें होनी चाहिए।
इन लाइनों में पर्याप्त वोल्टेज के साथ 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। सिंचाई के लिए बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए अलग फीडर की व्यवस्था होनी चाहिए। तीसरा, बिजली के बिल तैयार करना और वितरण की व्यवस्था ग्राम पंचायतों को संभालनी चाहिए। इसके लिए ऊर्जा कंपनियों की ओर से उन्हें तकनीकी मदद मुहैया कराई जानी चाहिए। ग्राम पंचायत बिल की वसूली भी कर सकती हैं।चौथा, वन, पहाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में जहां ग्रिड से बिजली की आपूर्ति करना मुश्किल हो, नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाया जाना चाहिए। इसके लिए अलग से योजना तैयार की जानी चाहिए।
पिछले छह दशकों से भारत के गांव अंधेरे में डूबे हैं। जब तक केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और वितरण कंपनियां प्रतिबद्धता नहीं दिखातीं, हालात में सुधार की गुंजाइश कम ही है।अगर “सबका साथ-सबका विकास” अजेंडा है तो बिजली को भी विकास का मुद्दा बनाये | जरूरी है |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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