राकेश दुबे@प्रतिदिन। थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर लगातार सातवें महीने शून्य से नीचे रही है। मई, 2015 में यह शून्य से 2.3 प्रतिशत नीचे रही लेकिन, जिस तरह से दालों और प्याज की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है वह सरकार के लिए चिंता का कारण है। इसके बावजूद जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में थोक महंगाई की स्थिति में कोई बहुत बड़ी उछाल आने की आशंका नहीं है। लिहाजा उद्योग जगत की तरफ से ब्याज दरों में कटौती का दबाव और बढ़ गया है।
अप्रैल, 2015 में थोक मूल्य आधारित महंगाई की दर शून्य से प्रतिशत नीचे थी। मई में यह थोड़ी बढ़ी है लेकिन अभी भी शून्य से 2.34 प्रतिशत नीचे है। यदि मोदी सरकार के कार्यकाल के एक वर्ष की बात करें तो मई, 2015 में महंगाई की दर 6.16 प्रतिशत थी। महंगाई को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा इस बात पर संतोष जता सकती है कि उसके कार्यकाल में महंगाई काफी कम हुई है। लेकिन रोजमर्रा की वस्तुओं के भाव अनियंत्रित हैं।
दाल, प्याज के अलावा मीट, अंडा, फलों और दूध जैसे प्रोटीन उत्पादों की कीमतों में तेजी का रुख है। जानकारों का कहना है कि सरकार को अब इन उत्पादों की आपूर्ति पक्ष पर ध्यान देना चाहिए ताकि देर होने से पहले इनकी महंगाई पर लगाम लग सके। दाल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल ही में कदम उठाए हैं। इसके बावजूद खाद्य उत्पादों की कीमतों में ३.८० प्रतिशत का इजाफा हुआ है जिसे जानकार बहुत चिंता का विषय नहीं मान रहे।
यह इस बात का संकेत है कि महंगाई की दर में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं होगा। ऐसे में रिजर्व बैंक को ब्याज दरों को घटाने को लेकर ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि महंगाई की दर केंद्रीय बैंक के लक्ष्यों के मुताबिक ही है।
जानकारों का मानना है कि महंगाई की मौजूदा स्थिति के बाद अब अगर मानसून का समर्थन मिल जाए तो ब्याज दरों में तेज कटौती का रास्ता साफ हो सकता है। रिजर्व बैंक मानसून की स्थिति के स्पष्ट होने का इंतजार करेगा। उसके बाद महंगाई इसी स्तर पर रहती है तो वह ब्याज दरों को कम करने का सिलसिला तेज कर सकता है।