राकेश दुबे@प्रतिदिन। 6 माह से उपर बीत गये है, “सांसद आदर्श ग्राम योजना “सारे सांसदों को रास नहीं आई| अभी भी कई स्वनामधन्य सांसद इस बात की बात जोह रहे हैं कि इस योजना से मुक्ति कैसे मिले ? बकौल ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह, 108 एमपी ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक गांव की पहचान भी नहीं की है।
आंकड़ों पर जाये तो इतनी कम अवधि में बड़ी संख्या में सांसदों का किसी गांव को गोद ले लेना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन पिछले साल लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मतिथि पर इस योजना की घोषणा करते हुए कहा गया था कि एक महीने के अंदर सभी सांसद अपने-अपने इलाके में एक-एक गांव चुन लेंगे जिसे 2016 तक आदर्श गांव के रूप में विकसित किया जाएगा।
इस बात को छह महीने बीत गए पर अभी तक सौ से ज्यादा सांसद गांव की पहचान भी नहीं कर पाए हैं, तो इसे सामान्य लापरवाही कह कर नहीं टाला जा सकता। निश्चित रूप से योजना की बुनियाद में ही कोई कमजोरी है, जिस पर न तो पहले ध्यान दिया गया और न अब बात की जा रही है। इस पर विचार के लिए हुई पहली राष्ट्रीय समिति की बैठक में कुछ सांसदों ने यह बात सामने रखी कि योजना के लिए अलग से फंड नहीं मुहैया कराए जाने से दिक्कत हो रही है। तृणमूल कांग्रेस के 46 सांसद अभी तक इस योजना से दूरी बनाए हुए हैं। पार्टी नेतृत्व का कहना है कि अगर कोई सांसद अपने फंड इस योजना में लगा देगा तो उसके क्षेत्र के अन्य हिस्सों के लिए पैसों की किल्लत हो जाएगी।और राजनीति बगेर धन के किसी भी दल की नहीं चलती है इन दिनों।
जेडी (यू) महासचिव के. सी. त्यागी का बयान है कि पूरे चुनाव क्षेत्र में किसी एक गांव के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो इससे अन्य गांवों की उपेक्षा होगी। इससे असमानता के साथ क्षेत्र में ईर्ष्या की भावना भी बढ़ेगी, जो तनाव का कारण बन सकती है। जाहिर है, सांसदों की उदासीनता सियासी कारणों से नहीं है। बेहतर तो यह होता कि एक क्षेत्र के सभी गांवों के समग्र विकास को ध्यान में रखकर कोई ठोस योजना बनती। अभी जिन गांवों को मॉडल के रूप में चुना गया है, वहां भी लोग संतुष्ट नहीं हैं। लगता है हड़बड़ी में कुछ नया करने की गरज में इस योजना को शुरू कर दिया गया। योजना पर उठे सवालों पर सरकार को विचार करना चाहिए और इसे पुनर्नियोजित करने से भी नहीं हिचकना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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