बंद हो जाएगी ग्वालियर श्योपुर नैरोगेज ट्रेन | Gwalior News

ग्वालियर। देश की एकमात्र सबसे लंबी दूरी की ग्वालियर नैरोगेज ट्रेन सुविधा बंद हो सकती है। वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल इस ट्रेन के यात्री डिब्बे कंडम हो चुके हैं। रेल मंत्रालय न तो नए डिब्बे बनवा रहा है और न ही इनकी मरम्मत करा रहा है। दूसरी तरफ 25 साल पुराने डिब्बे के ब्रेक सिस्टम से लेकर पहिए तक खराब हो चुके हैं। रेलवे के इंजीनियर इन डिब्बों को कंडम घोषित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर चुके हैं।

ग्वालियर से श्योपुर व श्योपुर से ग्वालियर आने वाले दस हजार से अधिक यात्रियों की जरूरत यह ट्रेन अब डिब्बों की कमी के कारण बंद हो सकती है। ग्वालियर से शिवपुरी व भिंड के लिए नैरोगेज ट्रेन की शुरूआत वर्ष 1904 में की गई थी, बाद में इसे श्याेपुर के रूट पर चलाया जाने लगा। वर्ष 2003 में यह ट्रेन उत्तर मध्य रेलवे के अंतर्गत संचालित की जाने लगी, लेकिन इसके अधिकतर डिब्बे वर्ष 1988 से 1992 के बीच तैयार किए गए थे।

रेलवे बोर्ड के नियम के मुताबिक किसी भी डिब्बे की अधिकतम उम्र 25 वर्ष मानी जाती है। इसके बाद उसे कंडम घोषित कर दिया जाता है। वर्तमान में नैरोगेज ट्रेन के 17 डिब्बे आगामी तीन माह के अंदर अपनी उम्र पूरी करने जा रहे हैं। इसके कारण उत्तर मध्य रेलवे इन्हें कंडम घोषित करने की तैयारी में है, लेकिन नए डिब्बों की व्यवस्था के लिए तैयार किया गया प्रस्ताव स्वीकृति के अभाव में लंबित पड़ा हुआ है। आगामी वर्ष 2016-17 में दो और 2017-18 में 18 डिब्बे अपनी उम्र पूरी कर लेंगे। इन डिब्बों के संचालन के लिए भी रेलवे के पास पहियों और ब्रेक सिस्टम की कमी है। आगामी टारगेट के मुताबिक अगले 15 वर्ष तक रेलवे द्वारा नैरोगेज ट्रेन का संचालन किया जाना है। ऐसे में अगर डिब्बों की व्यवस्था नहीं हुई, तो नैरोगेज ट्रेन के चक्के थम जाएंगे।

60 डिब्बे हैं मौजूद
रेलवे के पास वर्तमान में नैरोगेज ट्रेन के लिए 60 डिब्बे मौजूद हैं। इनमें से दो कोच को हेरिटेज घोषित कर दिया गया। दो डिब्बे ब्रेक डाउन के कारण खराब हो चुके हैं। छह डिब्बे मिड लाइफ रिपेयरिंग के लिए रखे हुए हैं, तो दो डिब्बे ओवरहॉलिंग के कारण काम के नहीं हैं। बाकी बचे डिब्बों से अब नैरोगेज संचालित की जाती है।

हर साल पांच करोड़ का घाटा
नैरोगेज ट्रेन प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में संचालित की जा रही है। दरअसल, इस ट्रेन के टिकटों की बिक्री बहुत कम होती है, जबकि इसमें यात्रियों की संख्या बहुत है। इसके अलावा इन ट्रेनों में चेकिंग की व्यवस्था नहीं है। रेलवे के अफसर सिर्फ सामाजिक दायित्व के आधार पर इस ट्रेन का संचालन कर रहे हैं। चूंकि नैरोगेज लाभ का सौदा नहीं है, इसके कारण जोन के अाला अफसर भी डिब्बों की व्यवस्था करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

सबसे संकरी रेलवे लाइन
यह विश्व में नैरोगेज की सबसे लंबी और संकरी रेलवे लाइन है। 610 मिमी (लगभग दो फीट) चौड़ी यह लाइन लगभग 200 किमी तक बिछाई गई है। रिकॉर्ड के मुताबिक वर्ष 1942 में इसे सिंधिया स्टेट के अंतर्गत संचालित किया जाता था। वर्ष 1951 में ग्वालियर स्टेशन मध्य रेलवे के अंतर्गत चला गया। ग्वालियर के अलावा सिर्फ कालका-शिमला, दार्जिलिंग अौर पठानकोट से जोगेन्दर नगर के लिए नैरोगेज ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है।

हम व्यवस्था कर रहे हैं
नैरोगेज ट्रेनों के नए डिब्बों के लिए रेलवे बोर्ड को प्रस्ताव भेज दिया गया है। जब तक वहां से स्वीकृति नहीं मिल रही है, तब तक हम डिब्बों की मेंटेनेंस के लिए कालका वर्कशॉप की मदद ले रहे हैं। वहां अभी हमने कुछ डिब्बे मेंटेनेंस के लिए भेजे हैं, जो आगामी सप्ताह तक आ जाएंगे। विजय कुमार, सीपीआरओ, एनसीआर इलाहाबाद मुख्यालय

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