अमन शर्मा/नई दिल्ली। मोदी सरकार इंडिया इंक को बड़ी राहत देने की कोशिश में पिछली यूपीए सरकार के बनाए भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम 2013 में बदलाव के लिए विधेयक पेश करेगी। इस कानून के पास होने पर कंपनियों के टॉप बॉस पर तब तक कानून का शिकंजा नहीं कसा जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि जूनियर्स के किसी करप्शन में उनका हाथ रहा है या उन्होंने उनका (जूनियर का) साथ दिया है।
2013 वाला विधेयक 1988 के भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन के मकसद से पेश किया गया था। इसमें एक प्रावधान करके किसी भी कमर्शल ऑर्गनाइजेशन में करप्शन की जिम्मेदारी हर उस शख्स पर डाल दी गई थी, जिस पर उसमें होने वाले कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी होगी। 2013 वाले बिल के मुताबिक व्यावसायिक संगठन का कोई भी ऑफिसर तब करप्शन दोषी पाया जाएगा, अगर यह पता चलता है कि वह उसकी अनदेखी के चलते हुआ है और मामले में खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी उसी पर होगी। इस कानून के तहत करप्शन के अपराध के दोषियों के लिए तीन से सात साल की सजा तय की गई है। कंपनियों में बॉस के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग होने और उनका उत्पीड़न होने का रिस्क बना हुआ है।
एनडीए सरकार की तरफ से इस कानून में नए संशोधन से विधेयक के अहम प्रावधान बदल गए हैं। अब किसी कंपनी में हुए करप्शन में उसके डायरेक्टर, मैनेजर, सेक्रटरी या दूसरे ऑफिसर तब दोषी माने जाएंगे जब यह साबित हो जाएगा कि करप्शन वैसे ऑफिसर की इजाजत या मिलीभगत से हुआ है। करप्शन में मिलीभगत होने का दोष साबित करने की जिम्मेदारी अब सरकारी एजेंसी की होगी, जबकि 2013 के प्रोविजन में आरोपियों को शुरू में ही दोषी मान लिया जाता था।
प्रिवेंशन टू करप्शन (अमेंडमेंट) ऐक्ट 2015 पर सोमवार को राज्यसभा में पेश किया जाना तय हुआ था, लेकिन सदन के बारबार स्थगित होने के चलते उसे पेश नहीं किया जा सका। मिनिस्टर ऑफ स्टेट (पर्सनेल) जितेंद्र सिंह ने इकनॉमिक टाइम्स को 29 अप्रैल को बताया था कि उनकी सरकार इस कानून को मौजूदा सत्र में लाने की कोशिश करेगी। कानून में इन बदलावों को शामिल करते वक्त एनडीए सरकार ने लॉ कमिशन ऑफ इंडिया की सलाह पर गौर किया है। कमिशन ने इस साल फरवरी में जारी अपनी रिपोर्ट में 2013 के कानून में प्रोविजन पर वॉर्निंग जारी की थी।