भोपाल। पन्ना हादसे के बाद पूरे प्रदेश में आरटीओ के खिलाफ माहौल खड़ा हो गया है। हर आती जाती बस पर नजर रखी जा रही है। ग्रामीण स्तर तक के पत्रकार आरटीओ की काली कमाई को उजागर कर रहे हैं, खस्ताहाल बसों पर स्पेशल स्टोरियां चल रहीं हैं। सोशल मीडिया पर खटारा बसों के फोटो शेयर किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर कमाई वाला विभाग पब्लिक के टारगेट पर आ गया है, ऐसे में विभागीय मंत्री ने विभाग को फेवर देने के लिए आज यूटर्न लेते हुए विभागीय अधिकारियों को क्लीनचिट दे डाली।
प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने आज कहा कि पन्ना हादसा बहुत ही दुख:द है, लेकिन इसमें सरकार विभाग की कहीं कोई लापरवाही नहीं है। यह पूरा हादसा ड्रायवर की लापरवाही से हुआ है। ड्रायवर जरूरत से ज्यादा तेज गाड़ी चला रहा था, यह बात मुझे बस के घायल यात्रियों ने खुद बताई। घटना पर सरकार की नैतिक जवाबदारी के सवाल पर मंत्री ने कहा कि यदि ड्रायवर खुद ही बस को नदी और तालाब में कूदा दे तो इसमें सरकार क्या कर सकती है।
हमारा काम वाहन फिटनेस, परमिट, ड्रायविंग लायसेंस आदि देखना है, लेकिन सड़क पर तो ड्रायवर को ही बस चलाना है। ड्रायवर द्वारा पैसे देकर फिटनेस लेने के सवाल पर मंत्री सिंह ने कहा कि वह झूठ बोल रहा है। वाहन की जांच के बाद ही फिटनेस सर्टिफिकेट जारी हुआ है किसी ने कोई पैसे नहीं लिए हैं। इसके बावजूद हमने संबंधित आरटीओ को निलंबित कर जांच करने के निर्देश दिए हैं। मंत्री ने कहा कि ड्रायवर के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं। वहीं बस संचालक के तीन अन्य बस परमिट भी निरस्त कर दिए गए हैं।
पन्ना का पीआरओ सस्पेंड
बस हादसे में कितने मरे और खबर दिल्ली तक कैसे पहुची ,सरकार अभी भी इसी उधेड़बुन में परेशान है। घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ट्वीट करने और लोकसभा में मृतकों के प्रति शोक जताए जाने को सरकार ने गंभीरता से लिया है। परिवहन मंत्री ने इस मामले में पन्ना जिले के जनसंपर्क अधिकारी उमेश तिवारी को सस्पेंड करने के लिए प्रमुख सचिव को पत्र लिखा है।परिवहन मंत्री ने खुद पत्रकारों से कहा कि पीआरओ द्वारा 50 लोगों के जिंदा जलने की खबर जारी की गई। इसी कारण मामला दिल्ली और पीएम तक पहुचा। हकीकत में मात्र 21 लोग ही मारे गए। ज्यादा संख्या बताए जाने के कारण ही मामले ने तूल पकड़ लिया।
इमरजेंसी गेट को गायब कर गए मंत्रीजी
पन्ना हादसे के लिए यदि ड्रायवर की लापरवाही जिम्मेदार है तो उतनी ही जिम्मेदारी इमरजेंसी गेट की भी बनती है जो बंद था। जिस पर जाली लगी थी और सीटें फिट कर दी गईं थीं। बस में आग लगी, यह हादसा था, परंतु यात्री बस में फंसे रहे यह सरकारी लापरवाही ही थी, परंतु मंत्रीजी इसे अब मानने को तैयार नहीं, क्योंकि वो नहीं चाहते कि सोशल मीडिया और जागरुक नागरिकों के निशाने पर आरटीओ आ जाए और गुपचुप हो रही करोड़ों की कमाई पर विध्न पड़े।
आरटीओ की काली कमाई का बंटवारा
कई सारी छापामार कार्रवाईयों में मिलीं डायरियों में परिवहन विभाग की काली कमाई और उसके बंटवारे का जिक्र मिला है। यह परंपरा मप्र में वर्षों पुरानी है। यह एक ऐसा विभाग है जो सत्तापक्ष की पार्टी को तो सबसे ज्यादा कमाई देता ही है, विधायकों एवं मंत्रियों का खर्चा भी उठाता है। यहां विपक्ष के नेताओं को भी भरपूर माल मिलता रहा है और मीडिया के धुरंधर भी अछूते नहीं हैं। कई प्रख्यात अखबारों के संपादकों के नाम परिवहन विभाग की डायरियों में लिखे पाए गए हैं। मप्र में यह पहला विभाग है जिसने Political protection tax और Media protection tax की विधिवत अदायगी शुरू की थी। कमोबेश यह परंपरा आज भी जारी है।