व्यापमं घोटाला: पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त....

इस साल फरवरी में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि उनके पास ऐसे सबूत हैं जिनसे यह साबित होता है कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले के दस्तावेजों से छेड़छाड़ कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बचाने की कोशिश की गई है. और वे यह दस्तावेज मामले की जांच कर रही एसआइटी को सौंपने वाले हैं. इस घटनाक्रम से ऐसी सनसनी फैली कि भोपाल से दिल्ली तक भारतीय जनता पार्टी हिल गई. यहां तक कि शिवराज के इस्तीफे तक के कयास लगाए जाने लगे. उसके बाद राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ इसी मामले में एफआइआर दर्ज हुई और उनके इस्तीफे की अटकलें भी तेज हो गईं. फिर 25 मार्च को वह दिन भी आया जब व्यापम घोटाले के आरोपी उनके बेटे शैलेष यादव की लखनऊ में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत ने 2013 से सुर्खियों में बने घोटाले की राजनैतिक संवेदनशीलता को चरम पर पहुंचा दिया. लेकिन दो महीने के भीतर ही फिजां बदल गई. 24 अप्रैल को जब मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने दिल्ली हाइकोर्ट से आई एक पेन ड्राइव की सामग्री को 'प्रथम दृष्ट्' फर्जी मान लिया तो शिवराज सिंह चौहान ने ताल ठोकर कह दिया कि दिग्विजय के सारे आरोप फर्जी थे और व्यापम घोटाले में उन्हें क्लीन चिट मिल गई है.

तो क्या सैकड़ों मेडिकल सीटों और सरकारी नियुक्तियों में फर्जीवाड़े से जुड़े व्यापम घोटाले को शिवराज के ऊपर सियासी बम की तरह फेंकने की दिग्विजय की कोशिश नाकाम हो गई है? जिस घोटाले में शिवराज सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जेल में हैं और जिसमें केंद्रीय मंत्री उमा भारती और खुद दिग्विजय सिंह का नाम भी उछल चुका हो, वह मामला इतना सीधा भी नहीं है.

अदालत में क्या हुआ
आरोप यह लगा कि घोटाले के मुख्य आरोपी नितिन मोहिंद्रा के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क को जब्त किए जाने और अदालत में पेश किए जाने के बीच ही बदल दिया गया. इसी बदलाव में भर्तियों में सिफारिश करने के वाले के तौर पर जहां-जहां मुख्यमंत्री का नाम लिखा था, वहां राज्यपाल, उमा भारती और अन्य मंत्रियों का नाम डाल दिया गया. दिग्विजय सिंह ने यह दावा इंदौर के उस सॉफ्टवेयर जानकार के जरिए किया जो शुरू में मामले की जांच में एसटीएफ और पुलिस की मदद कर रहा था, लेकिन बाद में व्हिसल ब्लोवर बन गया. हार्ड डिस्क में छेड़छाड के साक्ष्य दो जगह जमा किए गए. साक्ष्यों का एक बंडल दिग्विजय सिंह ने मामले की जांच कर रही एसआइटी को दिया. उधर, इसी तरह के दस्तावेजों को पांडेय ने यह कहते हुए मार्च में दिल्ली हाइकोर्ट में जमा करा दिया कि मध्य प्रदेश में उसकी सुरक्षा को खतरा है. चूंकि मामले की सुनवाई मध्य प्रदेश हाइकोर्ट में चल रही है, इसलिए दिल्ली हाइकोर्ट ने सबूतों वाली पेन ड्राइव मध्य प्रदेश हाइकोर्ट भेज दी. एसआइटी ने 24 अप्रैल को अदालत में रखी अपनी रिपोर्ट में कहा कि 'प्रथम दृष्ट्या' पेन ड्राइव में मौजूद सामग्री फर्जी पाई गई. यानी जो साक्ष्य प्रशांत पांडेय ने सीधे जमा कराए थे, उन पर एसआइटी की राय आई है और यह राय अभी अंतिम नहीं है. नौ मई को मामले की फिर सुनवाई होगी. वहीं दिग्विजय सिंह ने अपने हाथ से जो कागज एसआइटी को दिए हैं, उनकी जांच अभी जारी है. एसआइटी के प्रमुख चंद्रेश भूषण ने अपने बयान में यह बात साफ भी कर दी, "हमने सिर्फ पेन ड्राइव की सामग्री पर अपनी प्रथम दृष्ट्या रिपोर्ट दी है. दिग्विजय सिंह ने जो दस्तावेज दिए थे, उनकी जांच जारी है."

सियासत पर असर
लेकिन इस नुक्ते से मुख्यमंत्री शिवराज के उत्साह पर कोई फर्क नहीं पड़ा. आखिर अक्तूबर 2013 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे जश्न नहीं मना पाए क्योंकि व्यापम का बेताल उनके इर्दगिर्द मंडराता रहा. कभी उनके पीए, कभी उनके रिश्तेदार, कभी उनकी पत्नी और अंत में तो खुद उन्हीं पर आरोपों की कालिख लगाई गई. इनमें से कोई आरोप अदालत में प्रमाणित नहीं हुआ, लेकिन मामला सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दरबार में पेश होने के बाद शिवराज का भविष्य दांव पर लग गया. इसीलिए अदालत से फौरी राहत को पूरी ताकत से जनता और मीडिया के सामने पेश करने से वह पीछे नहीं हटे.

खुद को पाक-साफ घोषित करने के बाद वे एक बार फिर से पहले की तरह प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के दौरे में जुट गए हैं. यही नहीं जब मोदी सरकार अपने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर विपक्ष के हमलों से बेजार है तब 27 अप्रैल को शिवराज सरकार ने प्रदेश के लिए कृषक जोत अधिकतम सीमा (संशोधन) अध्यादेश जारी किया. इसे नाजुक मौके पर लिए गए चुनौतपूर्ण राजनैतिक फैसले जैसा माना जा रहा है. इस मुद्दे पर फैसला लेकर शिवराज ने अपने बढ़े हुए आत्मविश्वास का संकेत दिया है.

दिग्विजय की मंद-मंद मुस्कान
दूसरी ओर, सियासत के मंजे खिलाड़ी दिग्विजय सिंह भी कहां पीछे हटने वाले हैं. व्यापम के ताजा घटनाक्रम के सवाल पर उन्होंने चुटकी ली, "आपने वह कहानी तो सुनी होगी- दद्दू पहलवान जीत गए, दद्दू पहलवान जीत गए. जबकि हकीकत में पहलवान हार गया है, लेकिन खुद को जीता कहने से उन्हें कौन रोक सकता है." दिग्विजय का साफ कहना है कि उन्होंने एसटीएफ पर सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे और एसआइटी ने एसटीएफ से पूछकर ही पेन ड्राइव को फर्जी बता दिया. यह तो ऐसा हो गया जैसे चोर ही चोरी का फैसला सुनाए. एसआइटी को लिखे अपने पत्र में दिग्विजय ने पूछा है कि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले एसआइटी को उनसे, मामले के व्हिसिल ब्लोवर इंदौर के प्रशांत पांडेय से और सबसे बढ़कर बेंगलूरू के 'ट्रुथ लैब' का पक्ष भी जानना चाहिए था, जिसने पेन ड्राइव की सामग्री की सचाई प्रमाणित की थी. गौरतलब है कि 'ट्रुथ लैब' के सलाहकार मंडल में जस्टिस एम.एन. वेंकटचलैया सहित न्यायपालिका, आरबीआइ और नौकरशाही से जुड़े रहे 15 प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं. उधर, पांडेय एसटीएफ पर और गंभीर सवाल उठाते हैं, "जब एसटीएफ दिल्ली हाइकोर्ट में कह चुकी थी कि मुझे न तो गिरफ्तार किया जाएगा और न ही अदालत से पूछे बिना मुझसे पूछताछ होगी. इसके बावजूद 27 अप्रैल को मुझे एसटीएफ का समन आ गया. अगर दिल्ली हाइकोर्ट से तुरंत कार्रवाई नहीं होती तो ये मुझे जेल में डालकर मामला खत्म कर देते."

आगे का रास्ता
व्यापमं घोटाले के बाकी आरोपी पहले की तरह ही अपने मुकदमों का सामना करते रहेंगे और देश के अलग-अलग इलाकों में चल रही छापे की कार्रवाई भी जारी रहेगी लेकिन जहां तक सियासी रास्ते का सवाल है तो यह लड़ाई ऐसे दो लोगों के बीच है, जिनमें से एक बारे में कहा जाता है कि उसके दिए साक्ष्य सटीक होते हैं, तो दूसरे के बारे में कहा जाता है कि वह तो अपने बच्चों के लिए भी सिफारिशी फोन न करें. दिग्विजय की मध्य प्रदेश की सियासत में दमदार वापसी शिवराज का विकेट गिराने पर टिकी है. और फिलहाल शिवराज मजबूती से क्रीज पर हैं.

लेकिन यह मामला खत्म नहीं हुआ. अभी तो राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ हुई एफआइआर पर मिले स्टे पर आगे सुनवाई होनी है. वे कौन लोग थे जिन्होंने मध्य प्रदेश में मेडिकल सीटों की नीलामी की मंडी लगाकर पढ़ाकू छात्रों को डॉक्टर बनने से महरूम कर दिया. वे कौन लोग थे जिनके एक फोन पर सरकारी नौकरियां बंट रही थीं. इसीलिए तो मुख्यमंत्री जहां साफ कह रहे हैं कि अदालत अपना काम करेगी और वे फिलहाल किसी पर मुकदमा डालने नहीं जा रहे हैं, वहीं दिग्विजय सिंह ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट जाने और मामले में अलग से एफआइआर दर्ज करने के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. पांडेय के वकील विवेक तन्खा भी एसआइटी की रिपोर्ट से असंतुष्ट हैं. ऐसे में मामले में दो अलग-अलग पीआइएल सुप्रीम कोर्ट में आ सकती हैं. इसके बाद व्यापम घोटाले की व्यापक और असली जांच शुरू हो सकती है.

  • इंडिया टुडे से साभार


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