हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश के अनेक विरोधाभासी फैसलों में एकरूपता के लिए ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की विधि सहयोग से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल SLP 5817/2023 में दिनांक 01/5/2024 को जजमेंट प्रसारित कर दिया गया है। उक्त याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 28 फरवरी 2024 को सुनवाई पूरी करके डिसीजन हेतु रिजर्व कर लिया गया था। इस याचिका के साथ MPPSC-1019 के लगभग 200 से अधिक सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों ने भी SLP NO. 23514/2023 तथा 27620/2023 दायर कर जस्टिस शील नागू की खंडपीठ द्वारा हाईकोर्ट के 1255 पदों की भर्ती से संबंधित पारित फैसला दिनांक 02/01/2023 के अनुसार आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में (प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा) में शामिल नहीं किए जाने की राहत चाही गई थी।
परीक्षा के प्रत्येक चरण में आरक्षण का प्रावधान, हाई कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की दो डिवीजन बेंच की परस्पर विरोधाभास उत्पन्न करने वाले फैसले थे। पहले फैसला जस्टिस सुजय पाल एवं डी.डी. बंसल का जो याचिका क्रमांक 807/2021 से कनेक्ट 29 याचिकाओं में दिनांक 07/4/2022 को पारित करके कमलनाथ सरकार द्वारा दिनांक 17/02/2020 को राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था तथा MPPSC-2019 का रिजल्ट पुराने नियमों के अनुसार बनाकर फिर से जारी करने के लिए आवेशित किया गया था एवं आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) का अर्थान्वयन करके कहा गया था कि, परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित सीट पर सभी वर्ग के प्रतिभावान उम्मीदवारों को अवसर दिया जाना चाहिए। यदि आरक्षित वर्ग के प्रति भगवान अभ्यर्थियों को भर्ती परीक्षा के अंतिम चरण में शामिल किया जाएगा तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 तथा 21 का उल्लंघन होगा तथा आरक्षित वर्ग के कम अंक वाले अभ्यर्थियों को प्रथम स्टेज से ही बाहर कर दिए जाने से आरक्षण के उद्देश्य विफल हो जाएगा।
पूरी परीक्षा प्रक्रिया में केवल एक बार आरक्षण का प्रावधान, हाई कोर्ट का दूसरा फैसला
दूसरे मामले में हाई कोर्ट द्वारा की जाने वाली भर्ती परीक्षा में प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किया जाता है। हाल ही में जिला न्यायालय के 1255 पदों पर भर्ती परीक्षा में आरक्षित वर्ग का कटऑफ 74 नंबर तथा ओबीसी का कटऑफ 88 नंबर नियत किया गया था। इसके विरुद्ध आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनकी याचिका क्रमांक 8750/22 पर डिवीजन बैच क्रमांक -दो, के जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस वीरेंदर सिंह की खंडपीठ ने दिनांक 02/01/2023 को फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को वैधानिक करार दिया था। यानी पूरी परीक्षा प्रक्रिया में आरक्षण का लाभ केवल एक बार दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पेमेंट 28 फरवरी 2024 को उपरोक्त समस्त याचिकाओं की विस्तृत सुनवाई करने के बाद दिनांक 01/05/2024 को 22 पेज का फैसला जारी कर दिया। इस फैसले में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा बनाई गई प्रक्रिया को विधिक करार दिया गया है तथा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच क्रमांक 3 के जस्टिस सुजय पाल द्वारा याचिका क्रमांक 542/21 तथा 807/21 से कनेक्ट समस्त याचिकाओं में पारित फैसला दिनांक 07/04/2022 को संवैधानिक करार दिया गया तथा जस्टिस शील नागू की खंडपीठ द्वारा पारित फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण मानकर सामान्य वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए व्यवस्था दी गई कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा के परिणाम में अनारक्षित वर्ग में शामिल किया जाना संविधान सम्मत तथा मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 के नियम 4 एवं लोक सेवा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) के अर्थन्वयन के सम्वन्ध में जस्टिस सुजय पाल की खंडपीठ द्वारा पारित फैसला ही संविधान सम्मत है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने PSC द्वारा 2019 की विशेष परीक्षा में अपनाई गई नार्मलाईजेशन की प्रक्रिया को संवैधानिक करार दिया। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह, समृद्धि जैन ने की।
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