राकेश दुबे प्रतिदिन। जनता को राहत देने का निर्णय लेने का अधिकार भारतीय प्रशासनिक सेवा द्वारा चयनित, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पदस्थ कलेक्टर को नहीं है| यह अधिकार जिससे समाज को किए लाभ होता हो उस पर राजनीतिक मोहर लगना जरूरी है| निजी स्कूलों के लिए तय की गई गाइड लाइन से यह संदेश समाज में गया है कि कलेक्टर कुछ नहीं है जो है मंत्री है| समय पर निर्णय लेने को मंत्री और उनके आगे पीछे घूमने वाले अफसर अनुशासनहीनता मानते हैं|
एक चावल से हांड़ी की तासीर वाली कहावत संकेत दे रही है कि गडबडी कहाँ हो रही है| श्रेय का चस्का चाटुखोर अफसरों ने शिवराज मंत्रिमंडल के मंत्रियों को लगा दिया है| इस कारण वे अधिकारी जिनकी छवि कमोबेश साफ है और उनके उपर किसी राजनीतिक दल या नेता के विश्वस्त होने ठप्पा नहीं लगा है, निर्णय लेने में हिचकते हैं और यदि अपेक्षाकृत जूनियर है तो ....| पुराने खिलाडी अपनी स्न्ग्धिलेपन क्रिया से शिवराज सरकार के मंत्रियों को मालिश कर बड़े बना रहे हैं|
और यह तो स्कूलों से जुडा मामला था| आधे मंत्री और विधायक तो खुद का स्कूल नामी और बेनामी तरीके से चला रहे हैं| कलेक्टर क्या है, उनके लिए जनता को राहत देने का निर्णय ऐसे कैसे ले लिया| इससे कोई अच्छा संदेश नहीं गया है| दोनों कलेक्टर युवा है और कुछ करना चाहते हैं| ग्वालियर के कलेक्टर ने तो जनता से क्षमा मांग कर एक नई मिसाल पैदा की है| दुःख तो इस बात का है इन अधिकारियों सलाह देने वाले इनके उन वरिष्ठ की छवि उतनी उजली नहीं है कि उनके उपदेश पर चला जाये|
वैसे स्कूलों के मामले में श्रेय कोई भी ले निर्णय अच्छा हुआ है, पर क्रियान्वयन तो कलेक्टरों को ही करना है| उम्मीद है वे अपना निर्णय शासन का हित और जनसुविधा को देखकर लेंगे तो जनता उन्हें याद रखेगी| वैसे चाटूखोरों को भी जनता नहीं भूलती है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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