भोपाल। मप्र के 28 हजार दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के मामले में शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट तक केस हार चुकी है, वो सुप्रीम कोर्ट में सबको नियमित करने का वादा भी कर चुकी है, बावजूद इसके अब वो इस मामले में 'क्यूरेटिव पिटिशन' लगाने जा रही है, ताकि कर्मचारियों को नियमित करने की जिम्मेदारी से बच सके।
हाईकोर्ट ने यह दिया था निर्णय
मप्र हाईकोर्ट की युगलपीठ न्यायमूर्ति सुशील हरकोली व आलोक अराधे के एक नवंबर 2011 के निर्णय को ही सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। युगलपीठ ने अपने निर्णय में दैनिक वेतन भोगियों के संदर्भ में मप्र औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम 1961 व नियम 1963 की धाराओं को स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया है। इसमें उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के अंतर्गत कर्मचारियों को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया के समान है।
इसी तरह युगलपीठ ने रामप्रकाश बनाम मप्र राज्य 1989 की नजीर देते हुए कहा कि इस निर्णय में जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, उसी को आधार बनाकर कर्मचारियों के वर्गीकरण के बाद वर्गीकृत कर्मचारी को नियमित कर्मचारी के समान वेतन भत्ते व नियमित सेवा स्वत्वों के लाभ प्राप्त होंगे। इतना ही नहीं यदि कोई कर्मचारी वर्गीकृत श्रेणी में नहीं है और किसी अवधि के लिए संविदा पर अथवा 89 दिन के लिए उसकी सेवाएं ली जाती हैं तब उसका वेतन नियमित कर्मचारी के वेतन से कम नहीं दिया जा सकता है। ऐसे कर्मचारियों को कलेक्टोरेट पर वेतन नहीं दिया जा सकता है।
क्या है 'क्यूरेटिव पिटिशन'
क्यूरेटिव पिटिशन संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसकी सुप्रीम कोर्ट ने मिसकैरेज ऑफ जस्टिस (न्याय की हत्या) की भावना से व्यवस्था की है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था कर्मचारियों के हित में दी है, न कि सरकार के हित में। क्यूरेटिव पिटिशन लगाने के लिए वादी को सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर वकील की राय लिखित में लेनी पड़ती है। इसकी सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्तियों की तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जाता है। ये पिटिशन को सुनते हैं। इसके बाद यह मामला पुन: उसी पीठ में जाता है, जिसने निर्णय दिया है। इस पूरी प्रक्रिया में न्यायमूर्तियों की पीठ को यदि लगता है कि वादी ने न्यायालय का समय बर्बाद किया है तो वह वादी पर एक्सेम्पलरी कॉस्ट भी लगा सकती है।
यह प्रदेश का पहला मामला है
सरकार को क्यूरेटिव पिटिशन लगानी पड़ रही है। यह प्रदेश का पहला मामला है। इससे पहले भोपाल गैस त्रासदी के पीडितों ने गैस कंपनी व उसके अधिकारियों के खिलाफ क्यूरेटिव पिटिशन लगाई थी। इस पिटीशन में पीड़ितों के साथ सरकार भी थी, लेकिन दैनिक वेतनभोगियों के निर्णय के बाद सरकार पीड़ित पक्ष में पहुंच रही है, जबकि गलती सरकार की ही है। ऐसे में क्यूरेटिव पिटिशन का क्या मतलब है।
भानू प्रताप सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता व याचिकाकर्ता के वकील
कंटेम्प्ट लगाएंगे और आंदोलन भी करेंगे
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक वेतनभोगियों के हितों के पक्ष में निर्णय दिया है। यदि सरकार ने कोर्ट के आदेश को नहीं माना तो हमारी यूनियन कोर्ट में कंटेम्प्ट लगाएगी और प्रदेशव्यापी आंदोलन भी करेगी। सरकार ने कोर्ट में प्रदेश के सभी 28 हजार दैनिक वेतन भोगियों को नियमित करने का लिखित में बयान दिया है।
शंकर सिंह सेंगर, प्रांतीय अध्यक्ष, राज्य निर्माण विभाग कर्मचारी संघ