रेलवे में तत्काल टिकिट घोटाला

भोपाल। रेलवे ने IRCTC और आॅनलाइन बुकिंग के नाम पर रेल टिकिटों को आम आदमी की पहुंच में तो बना दिया है लेकिन यह अब एक ख्वाब ही बनकर रह गया है। तत्काल टिकिट के मामले में तो खुला घोटाला चल रहा है। रेलवे के अफसरों से लेकर IRCTC के तकनीकी विशेषज्ञों तक सारे के सारे प्रमुख लोग इसमें शामिल हैं। यात्रियों को मजबूर किया जा रहा है कि वो दलाल के माध्यम से ही टिकिट बुक कराएं।

लोग इसे अपनी किस्मत खराब तो कभी इंटरनेट कनेक्शन खराब मानकर बैठ जाते हैं परंतु असलियत यह है कि यह एक संगठित आर्थिक अपराध है। जैसे ही आप IRCTC के तत्काल टिकट के लिए सुबह दस बजे वेबसाइट को खोलते हैं तो खुलने की स्पीड काफी अच्छी होती है पर तत्काल ऑप्शन पर क्लिक करते ही आपको लाल रंग में एक मैसेज लिखा हुआ नजर आ जाता है। जिसका अर्थ साफ साफ यही होता है कि "तकनीकि खराबी की वजह से वेबसाइट के मौजूदा पेज तक पहुंच पाना मुश्किल है" पर एक और विडंबना देखिए जैसे ही सभी ट्रेन में तत्काल टिकट या फिर प्रीमियर तत्काल टिकट समाप्त हो जाते हैं, यह परेशानी भी समाप्त हो जाती है। मतलब यह है कि अगर आपको तत्काल में टिकट लेना है तो भी प्रतीक्षा सूची की टिकटें उपलब्ध होंगी लेकिन कनफर्म टिकट तो दलालों के पहुंच में ही है।

इस संबंध में जब कुछ टिकट दलालों से बात की गई तो उन्होंने नाम और जगह सार्वजनिक न करने की शर्त पर यह जानकारी दी कि रेलवे टिकट का धंधा बहुत बड़ा हो चुका है और इसमें रेलवे के अधिकारी भी पूरी तरह से लिप्त हैं। दलालों का साफ कहना है कि रेलवे कर्मचारी ही नहीं चाहते है कि आम जनता के बीच तत्काल टिकट आसानी से पहुंच जाए इसीलिए उन्होंने ही कुछ ऐसी तकनीकि खामी पैदा की हैं जिससे तत्काल टिकट वेबसाइट के जरिए उपलब्ध ना हो सके। उन्होंने यह भी बताया कि बैकडोर से तत्काल टिकिट लेने के लिए उन्हें भी एक निश्चित रकम संबंधित अधिकारी को देनी होती है। इस तरह प्रतिदिन करोड़ों का काला कारोबार देशभर में हो जाता है। यह इतना बिखरा हुआ है कि पूरी की पूरी सीबीआई भी इसकी परतें नहीं खोल पाएगी।

ठेके पर जा रहीं हैं रेलें
भोपाल मण्डल की बात करें तो यहां इन दिनों रेल ठेके पर जा रहीं हैं। हमारे रेलसूत्र दावा करते हैं कि डीआरएम आफिस में टीटी की ड्यूटी लगाने के एवज में उससे एक निश्चित रकम ली जाती है। फिर वो रेल में कितने यात्रियों से क्या क्या वसूलता है इसकी खुली छूट भी दी जाती है। टीटीयों के बीच रेल को ठेके पर लेने की होड़ भी लगी रहती है। जिन गाड़ियों में यात्रियों की ओवरलोडिंग ज्यादा होती हैं वो मंहगी जातीं हैं।

अफसरशाही के कुतर्कों का जवाब
इस मामले में रेलवे के अफसर अक्सर कहते हैं कि बेवसाइट पर लोड ज्यादा होने से ऐसा हो जाता है, सवाल यह है कि IRCTC से ज्यादा लोड तो गूगल और फेसबुक पर होता है, फिर वहां ऐसा क्यों नहीं होता। IRCTC हर टिकिट पर एक्स्ट्रा कमाती है। कोई समाजसेवा नहीं कर रही। दुनिया में ऐसे सर्वर मौजूद हैं जो IRCTC की स्पीड को 800 गुना तक बढ़ा सकते हैं। यह असंभव नहीं है और इसके लिए किसी बजट की भी जरूरत नहीं है। IRCTC को यात्रियों के अलावा विज्ञापनदाताओं से होने वाली मोटी कमाई का एक छोटा सा हिस्सा ही खर्च होगा और सबकुछ आसान हो जाएगा, लेकिन अधिकारी इसे आसान बनाना ही नहीं चाहते।

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