भाजपा ने बदला फंडा: अब राहुल के चुटकुले नहीं सुनाएंगे भाजपाई

उपदेश अवस्थी/नईदिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का फंडा बदल दिया है। अब उसे 'कांग्रेस मुक्त भारत' नहीं चाहिए, बल्कि कांग्रेस युक्त भारत चाहिए ताकि जीत आसान हो और केजरीवाल या लालू यादव जैसे लोकल लीडर्स से बचा जा सके।

महज एक साल में ही भाजपा को यह समझ में आ गया है कि वो कांग्रेस से ही लड़ सकती है और कांग्रेस से ही जीत सकती है। क्षेत्रीय दलों से लड़ने और जीतने की उसकी रणनीतियां फेल हो जातीं हैं। रिकार्ड बताते हैं कि जहां जहां भाजपा का कांग्रेस से मुकाबला हुआ, भाजपा ने जबर्दस्त जीत हासिल की, लेकिन जब जब वो किसी क्षेत्रीय दल से लड़ी, बुरी तरह हार गई। इसलिए अब भाजपा के रणनीतिकारों ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना देखना बंद कर दिया है बल्कि राहुल गांधी को साइलेंटली हाइट दे रहे हैं। वो चाहते हैं कि राहुल गांधी को मीडिया में स्पेश मिले और राहुल गांधी देश का एक नया नेता बनकर सामने आए, ताकि अगला लोकसभा चुनाव आसान हो सके।

यही कारण है कि राहुल गांधी ने जिन जिन मुद्दों को उठाया, भाजपा ने उसे वजन दिया और खुद को कमजोर साबित करने का प्रयास किया:
  • रियल एस्टेट बिल को राज्यसभा में सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया गया है।
  • भूमि अधिग्रहण बिल को सरकार ठंडे बस्ते में डालने की योजना है।
  • राहुल के सवालों का जवाब देने के लिए सदन में तीन से चार मंत्री खड़े हो जाते हैं, ताकि धीरे धीरे राहुल गांधी एक वजनदार नेता की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें।
  • नेट न्यूट्रिलिटी पर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद भी निजी टिप्पणी से बचे।
  • सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तीन दिन बाद सदन में लिखित स्पष्टीकरण के साथ आने को मजबूर हुए।


भाजपा नहीं चाहती कि कोई 'आप' या 'हम' जैसी पार्टियां उसकी राह में कांटे बिछाएं। जनता परिवार को वो कम गंभीर चुनौती नहीं मानती। बिहार जीतना जरूरी है परंतु फिलहाल हालात भाजपा के बहुत पक्ष में नहीं हैं। यदि हार गए तो बड़ा बुरा संदेश जाएगा। यूपी में सपा काबिज है तो बसपा भूमिगत होकर जमीन मजबूत कर रही है, भाजपा के लोकल लीडर्स मोदी के घमंड में घूम रहे हैं, जनता से बहुत ज्यादा जुड़ाव नहीं है। राम मंदिर मुद्दा पैरों की फांस बना हुआ है। जब तक मंदिर नहीं बन जाता, यूपी जीतना नामुमकिन जैसा ही है।

मध्यप्रदेश में भी अब तीसरी पार्टियां सर उठाने लगीं हैं। जलसत्याग्रह के नाम पर 'आप' को अच्छी हाईट मिल रही है। भले ही शिवराज कितना ही आत्म गुणगान कर लें लेकिन व्यापमं घोटाले ने उनकी ब्रांड इमेज को बड़ा झटका दिया है। यदि तत्काल चुनाव हो जाएं तो जनता ​उचित विकल्प की ओर झुक जाएगी। फिलहाल दिग्विजय सिंह की वजह से मप्र में भाजपा खुद को सुरक्षित मानती है परंतु यदि कार्पोरेट का सपोर्ट किसी लोकल पार्टी को मिल गया तो रातों रात हालात बदल जाएंगे।

कुलजमा बात यह कि भाजपा के रणनीतिकार नहीं चाहते कि लोकल पार्टियों से पंगा लेकर नए नए प्रयोग किए जाएं। कांग्रेस ने देश पर 60 साल शासन किया है और इन 60 सालों में तैयार हुए कांग्रेस के भ्रष्टाचार के उपन्यास को बांच बांच कर अगले 15—20 साल तो निकाल ही लिए जा सकते हैं। इसलिए अब भाजपा चाहती है कि जहां भी उसका मुकाबला हो कांग्रेस से ही हो। कांग्रेस मुक्त भारत का सपना तो भाजपा के सत्ता में बने रहने के सपने को ही तोड़ रहा है।

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