तबादले: मंत्रियों ने अटका रखीं हैं फाइलें, सिर्फ 8 दिन शेष

भोपाल। 15 अप्रैल से शुरू हुआ तबादला का मौसम अब खत्म होने वाला है। बस 8 दिन शेष बचे हैं, लेकिन मंत्रियों ने अब तक सारी की सारी फाइलें अटका रखीं हैं। ज्यादातर विभागों की तबादला सूची अब तक जारी नहीं हुई है।

इधर तमाम पीजेपी नेता अपनी पसंद का अधिकारी लाने के लिए जोड़ तोड़ लगा रहे हैं तो उधर कर्मचारी अपनी पसंद की पोस्टिंग के लिए जुटे हुए हैं। इन सबके बीच मंत्रियों के दरबार सजे हुए हैं और वो फाइलों को अटकाकर दरबार का आनंद उठा रहे हैं। बीजेपी नेताओं ने सबसे ज्यादा राजस्व विभाग में तबादले के आवेदन दिए हैं। राजस्व के अलावा स्वास्थ्य, पीडब्ल्यूडी, कृषि और नगरीय प्रशासन में तबादला आवेदनों का अंबार है।

15 अप्रैल से 15 मई तक तबादले होने है। जब बैन हटा तो भाजपा स्थानीय नेताओं में उम्मीद जागी कि अब वो अपनी पसंद के अधिकारी और कर्मचारियों की तैनाती करवा सकेंगे लेकिन उम्मीदों को पार लगाने में नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। सबसे ज्यादा आवेदन राजस्व विभाग में आए हैं। विधायक और जिला अध्यक्षों ने तहसीलदार, नायब तहसीलदार और पटवारी के तबादले चाहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य अधिकारी भी स्थानीय नेताओं को पसंद नहीं आ रहे। उनके बदलाव की मांग भी बड़ी संख्या में आई है। पीडब्ल्यूडी विभाग, कृषि और नगरीय प्रशासन में भी कार्यकर्ताओं ने मंत्रियों को तबादलों की सूची थमाई है। राजस्व मंत्री रामपाल सिंह साफ कहते हैं कि बीजेपी नेताओं की पसंद से ही तबादले किए जाएंगे।

इन विभागों में सैकड़ों आवेदन
राजस्व विभाग
स्वास्थ्य विभाग
लोक निर्माण विभाग
कृषि विभाग
नगरीय प्रशासन विभाग

दरअसल इन विभागों में सैकड़ों की संख्या में आवेदन इसलिए आए हैं। क्योंकि इन विभागों का सीधा सरोकार आम आदमी से है। विधायकों की या अन्य बीजेपी नेताओं के विवाद की खबरें भी इन्ही विभाग के अधिकारियों से आती हैं। सरकार कहती है कि मंत्रियों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। एक प्रक्रिया है जिसके तहत तबादले किए जा रहे हैं।

एक तरफ बीजेपी के लोकल लीडर्स का दवाब, दूसरी ओर अधिकारियों कर्मचारियों की जुगाड़ के चलते माहौल तनावपूर्ण हो चुका है। मप्र में तबादला उद्योग के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। सरकारें कितनी भी सतर्क हो जाएं लेकिन तबादला कारोबार के दलाल तो सक्रिय हो चुके हैं। देखना रोचक होगा कि इस बार की तबादला सूचियों में किसके नाम सबसे ज्यादा आते हैं, भाजपा के लोकल लीडर्स के या तबादला कारोबार के दलालों के।

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