बावर के बहाने हिन्दू मान बिंदुओ का अपमान कब तक...?

डाॅ अजय खेमरिया। देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, डाॅ मुरली मनोहर जोषी, उमा भारती समेत 20 कथित आरोपियो के खिलाफ नोटिस जारी किए है. ये नोटिस इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में घोषित उस फैसले को चुनौती देने वाली हाजी मेहमूद की याचिका पर जारी किए गए जिसमें सीबीआई ने इन आरोपियो के नाम विवादित ढाॅंचा गिराने की साजिष से हटा दिये थे. और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन सभी नेताओ को बरी कर दिया था।

जैसी कि अपेक्षा थी खबर ब्रेक होते ही देष भर के टी.व्ही. चैनलो पर बहस शुरू हो गयी. बाबरी मस्जिद का जिन बोतल से बाहर निकलकर सेक्यूलरिज्म का वाद्ययंत्र पूरे जोर से बजाया जाने लगा. 22 साल पुराने इस मामले को 24 घंटे के खबरिया चैनलो ने ऐसे प्रस्तुत किया मानो आज की ही कोई घटना हो. लगे हाथ मोदी सरकार आर.एस.एस. पर भी दृष्टांत हो गए। कुल मिलाकर टेलिविजन की सेक्यूलर जमात को कुछ दिनों के लिए रोजगार मिल गया लगता है इस देष में सबसे सस्ता और सरल तरीका सेक्यूलर होने का ही है.

खासकर सेक्यूलर बुद्विजीवी हिन्दू मत, उसकी मान्यताओ, उसके अराध्य चरित्रों को जी भरकर गालियां दीजिए और राष्ट्रीय मीडिया से लेकर सेक्यूलरिज्म की दुकान चलाने वाली सियासी पार्टीयों ममता, मुलायम, सोनिया, नीतीष, लालू, सबकी आंखोे के तारे बन जाइए। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेष से दो दिन पहले ही रामनवमी थी. राम जो भारत भूमि की आत्मा है, विष्वास है, आस्था है. करोडो की अराध्य शक्ति है. जो देष काल से परे प्रमाणिक लोक आस्था है. उस जीवन चरित्र की जन्मभूमि को लेकर एक वर्ग और उसे तुष्ट करने वाली विघटनकारी ताकतों का बार बार अयोध्या को लेकर यह रवैया सिर्फ राजनीति नही है बल्कि करोडों हिंदुओ की आस्था के साथ क्रूर संसदीय आक्रमण भी है.

सच तो यह है कि जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है वह ढांचा हिन्दुओ के अपमान का संवेदनशील प्रतीक भी था. इस ढांचे से प्रभु राम के जन्म के प्रमाण को अब वैज्ञानिक खुदाई अनुसंधान के जरिए भी प्रभावित किया जा चुका है. बाबजूद इसके प्रतिवर्ष 06 दिसम्बर को करोडो हिंदू सियासी जमात के प्रलाप से स्वंम को धार्मिक रूप से आहत महसूस करते है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जब अयोध्या में खुदाई की गयी तब उसके नीचे मंदिर के अवषेष मिले भारतीय पुरातत्व संरक्षक विभाग के रिकार्ड में इसे देखा जा सकता है. इसके बाबजूद मुस्लिम वर्ग लगातार यह सबाल उठाता रहा है कि राम नाम का एतिहासिक सबूत क्या है ? क्या सबूत है कि जिस स्थल को जन्मभूमि होने का दावा किया जाता है वहीं राम का जन्म हुआ है ? इसके क्या सबूत है कि बाबर ने मंदिर तोड कर मस्जिद बनायी ? इन सवालो के जबाव एतिहासिक खुदाई से मिल जाने के बाबजूद सेक्यूलर फोर्स और मुस्लिम वर्ग अयोध्या पर अपना दावा छोडने को राजी नही है।

उल्टे किसी भी तरह इस मामले को उलझाये रखना चाहते है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से पूर्व कई बार प्रधान मंत्रियो ने इस मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से निबटाने का प्रयास किया. हाल ही में 90 बर्षीय हासिम अंसारी जो इस मामले के पक्षकार है ने अदालत के बाहर  इस पूरे मामले को सुलझाने पर सहमति दी लेकिन सिर्फ चंद मुसलमानो माक्र्सवादी बुद्विजीवियों, और तथाकथित हठ धर्मी धर्मनिरपेक्षता वादियों के कारण अयोध्या का सवाल सुलझ नही पा रहा है।

उल्टे इन लोगो द्वारा श्रीराम और उनके अयोध्या संबंध को ही नकारा जाता रहा है. राम के ही अस्तित्व पर सवाल इस देष में अक्सर सरकारी स्तर पर उठाये जाते रहे है. राम सेतु प्रकरण की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान यूपीए सरकार ने अपने एक हलफनामें में प्रभूराम के ही अस्तित्व को नकार दिया था. यानि हिन्दुतत्च के हर मानबिंदुओ को सेक्यूलर जमात और आजादी के बाद की सरकारें अपमानित कर करोडो हिंदुओ की भावनाओ को आहत करती रही है. दूसरी ओर मानव इतिहास साक्षी है कि हिन्दुओ ने कभी किसी मत या किसी पैगम्बर के अस्तित्व या उनसे जुडे चमत्कारों पर सवाल नही उठाया है।

अयोध्या पर दाबा ठोकने वाले वर्ग से यह सरल सवाल कभी किसी ने नही पूछा कि 1527 में अयोध्या में इतनी बडी संख्या में मुसलमान तो नही हुए होंगे कि मस्जिद बनाने के लिए उन्हे उस स्थान या उसके आस-पास के अलावा दूसरी जगह नही मिली होगी जिसे राम जन्म भूमि कहा जाता था। सच तो यही है। कि इस ढांचे के निर्माण का एकमात्र उददेश्य पराजित हो चुके हिन्दुओ को अपमानित कर तत्समय यह एहसास कराना था कि वे कितने असहाय है।

06 दिसम्बर 1992 से लगातार इस देष में कई मुस्लिम संगठन, मक्र्सवादी साम्यवादियो की कई किस्में उनके साथ साथ चलने वाली स्वघोषित जाने माने इतिहासकार समाज विज्ञानी, धर्मनिरपेक्षता वादी दुनिया को यह बताने का प्रयास करते रहते है कि हिंदूओ ने अल्पसंख्यक समूदाय के एक प्रसिद्व उपासना स्थल का विध्वंस कर डाला है. लेकिन यह बात आज तक किसी बुद्विजीवी ने नही उठायी कि जिस तरह मुस्लिम हमलावरों, सुल्तानों ने हजारों मंदिरो को धरासायी किया है क्या वह इतिहास का शोभनीय अध्याय है ? मुस्लिम आक्रांताओ के मंदिर मर्दन का उल्लेख इन मुस्लिम आक्रांताओ के साथ चलने वाले लेखको ने अपनी रचनाओ में स्पष्ट रूप से रेखांकित की है।

भारत के इन वाम मार्गी सेक्यूलरिस्ट बुद्विजीवियों ने क्या कभी यह बात सार्वजनिक रूप से उठायी कि मथुरा स्थित कृष्ण मंदिर, वाराणसी के शिवमंदिर के बिल्कुल सटाकर ही मस्जिदे क्यो बनायी गयी है. क्या ये महज संयोग भर है ? करोडो हिन्दुओ की आस्था से जुडे इन पवित्र शहरो और वहां के मंदिरों के अलावा इन शहरों में क्या कोई और जगह उपलब्ध नही थी ? ऐसा करने के पीछे सिर्फ एक ही मकसद था, पराजित हिन्दुओ को उनके अपमान, उनकी बेबसी, एवं इस्लामी हमलावरों की शक्ति एवं अपराजेयता का एहसास कराना। क्या कोई आत्मस्वाभिमानी राष्ट्र और वहां की जनता अपने अपमान, अपनी गुलामी, की याद दिलानें वाले स्मारको को बर्दाष्त कर सकते है ? हिन्दू धरासायी कर दिये गये हजारो पवित्र मंदिरो और उनके ऊपर बनाये गये मस्जिदो को भुलने के लिए तैयार भी है लेकिन राम, षिव, कृष्ण हिन्दूओ के सबसे पूज्यनीय देव है। जिन तीनो स्थानो काषी, मथुरा, अयोध्या पर आताताइयों, मूर्तिभंजको द्वारा निर्मित मस्जिदो की उपस्थिति हिन्दुओ का अपमान ही है, उनकी सभ्यता, आस्था एवं मानस पर दिए गए जख्मों को जिंदा करने वाले स्मारक है.। करोडो हिन्दुओ की भावनाओं एवं आस्थाओ के प्रति किसी भी तरह की चिंता किए बिना वाममार्गी, धर्मनिरपेक्षतावादी बाबरी ढांचे के नाम पर दुनिया भारत की असहिष्णु छवि बनाने में 23 सालों से निरंतर लगे हुये है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा संज्ञान पर जिस तरह इस जमात ने मीडिया में इसे विष्लेषित किया वह इस मानसिकता की बानगी भर है। 

इस देष के हिन्दूओ और बुद्विजीवियो का यह दायित्व है कि इस प्रायोजित दुष्प्रचार का जबाव प्रचार माध्यम और मीडिया के माध्यम से दिया जाना ही चाहिए। हमें बाबरी ढांचे के नाम पर जारी हिन्दू विरोध के संदर्भ में हजारों मंदिरो के शहीद होने की बात हमारी पीढी को बताना ही होगी. दुर्भाग्य से हिन्दू समाज आज अपने साथ हुए इस बर्वर मुस्लिम आतंक को याद ही करना नही। चाहता। मौजूदा दौर में कथित आर्थिक विकास और संपन्नता के नाम पर जहां हिन्दू अपनी जडो से कटता जा रहा है वही मुस्लिम वर्ग दुनियाभर में उच्च तकनीकी और पैसे की दम पर इस्लाम की विचारधारा को हर कीमत पर प्रसारित और स्थापित करने में जुटा है. ईराक, सीरिया, में जन्मे आईएस किसी प्रकार के गौरिल्ला लडाके नही है बल्कि तकनीकी पसंद आतंकवादी है. भारत में इस खतरनाक संगठन से जुडने और सहानुभूति रखने वाले लोग भी आई.टी. प्रोफेसनल ही सामने आए है। जाहिर है यह कहना कि उच्च षिक्षा धर्मान्धता को कमजोर करती है इस्लाम के संदर्भ में पूरी जरह से सच नही है।

इसीलिए अयोध्या और बाबरी ढांचे का प्रष्न सिर्फ एक मंदिर तक सीमित नही है - वह इस देष में सुगठीत हिन्दू विरोधियो की खतरनाक मानसिकता का समुच्चय भी है। बाबर जो एक आताताई था जो इस देष का भी नही था जो यहां लूटपाट, राज करने के बाद यह भी नही चाहता था कि उसे यहां दफन किया जाये। क्या ऐसे किसी व्यक्ति, उसकी संतानों या फिर उसके घिनोने कार्यो को हम याद रखना चाहेंगें ? इसलिए 06 दिसम्बर या इससे जुडे न्यायालयीन निर्देष। निर्णय पर रूदाली की तर्ज पर रूदन करने वाले इन चेहरों के प्रतिउत्तर में हम हिन्दूओं को भी तथ्योे के साथ इतिहास का लेखा जोखा प्रस्तुत करना ही होगा वरन फेसबुक, व्हाट्सएप, और एन्ड्रायड पर नाचती हमारी पीढी राम, कृष्ण, और षिव को ही भूल जायेगी और जो कुछ टी.व्ही पर इन रूदालीयों से सुनेगी उसे सच मान लेगी।

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